कविता
पता नहीं आजकल कैसी कविता सुनाई जाती है,
कविता के नाम पर केवल तुकबंदी मिलाई जाती है।
देख कर स्वयं को कविता भी शर्माई जाती है,
बिन लय छंद और भाव के कविता बनाई जाती है।।
पता नहीं कौन-कौन से नियम बनाए जाते हैं,
तोड़ मरोड़ के स्वर जब गीत सुनाए जाते हैं।
ढूँढे से नहीं मिलता सूर कबीर तुलसी का भाव,
प्रसाद पंत निराला के भाव अजमाये जाते हैं।।
देख रचना, गीत रोते, और कविताएँ सुबकती हैं,
करुण क्रंदन गजल करतीं, शायरी तड़पती है।
महज़ तुक बन्धन बँधी कृति को सभी कविता कहें,
देख कर यह दुर्दशा कविताएँ भी बिलखती हैं।।
रचयिता
पूनम गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय धनीपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।
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