होली आई ये
होली आई रे सखी, मिलकर गाओ फाग।
राधा कान्हा झूमती, देखो अपने बाग।।
होली का त्योहार है, बिखरा कैसा रंग।
सखियाँ सारी खेलतीं, प्रियतम होते दंग।।
आपस में तज बैर दो, प्रीत मीत हों संग।
रहे हवा में गुलाल भी, भीग रहा है अंग।।
राधा होली खेलती, रचती फिर वो रास।
सखियाँ सारी साथ में, आया फागुन मास।।
राधा ढूँढे श्याम को, आओ मेरे नाथ।
है गुलाल बिखरा यहाँ, होली खेलें साथ।।
राधा कान्हा साथ में, होली खेलें आज।
कैसा अनुपम दृश्य है, बजता हिय में साज।।
भाँति-भाँति के रंग हैं, घोले मैंने आज।
सभी सखी हैं खेलतीं, छोड़े सारे काज।।
रंग चढ़े जब प्रेम का, हृदय मिले है चैन।
अंग-अंग फड़कन लगे, राहें तकते नैन।।
रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।
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