फाल्गुन आयो रे
फाल्गुन आयो रे सखी
फाल्गुन आयो रे...
मैं तो रंगी पी के रंग
सिहरे देह, उठे मन तरंग
फाल्गुन आयो रे सखी
फाल्गुन आयो रे...
पी के प्रेम के आगे रंग, गुलाल,
पिचकारी सब फीके होय रे
फाल्गुन आयो रे सखी
फाल्गुन आयो रे...
अठखेलियाँ करती सखियाँ
मोहे सताए रे
फाल्गुन आयो रे सखी
फाल्गुन आयो रे...
प्रेम की बौछारों से
हुई सरोबार रे
फाल्गुन आयो रे सखी
फाल्गुन आयो रे...
प्यार, तकरार, मनुहार में
ऐसे ही समय बीते रे
फाल्गुन आयो रे सखी
फाल्गुन आयो रे...
रचयिता
सुषमा मलिक,
सहायक अध्यापक,
कंपोजिट स्कूल सिखेड़ा,
विकास खण्ड-सिंभावली,
जनपद-हापुड़।
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