अंतर्मन की आवाज

एक दिन मन इस तरह विचलित हुआ
अंतर्द्वन्द की आंधियों से घायल हुआ।
मन की पीड़ा जब चरम को छू गई
अंतर्मन को किसी ने यूँ कर छुआ।
इस तरह विचलित न हो कुछ और कर
दुनिया और दुनिया वालों पर गौर कर।
सितारों से आगे जहाँ कुछ और है
औरों को सुकूँ दे उनके दुःख को दूर कर।
कोशिश कर मुफलिसों के चेहरों पर मुस्कान लाने की
बिछड़ों को मिलाने की उजड़ों को बसाने की।
तुझमें ताक़त है हवाओं का रुख बदलने की।
तू कोशिश तो कर एक क़दम आगे बढ़ाने की।
मायूसी और बेबसी के दौर से बाहर निकल
यूँ न दे खुद को सजा बेदर्द जमाने की।
ये जिंदगी गर किसी के कम आ जाये
तो खुल जाएँ कई राहें नई पहचान पाने की।

रचयिता
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज,
नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

Comments

Total Pageviews