उम्मीदों भरा जीवन

भावनाओं के समुन्दर में,
           मैं गोते लगा रहा हूँ।
कल्पनाओं के आँचल में,
          खोते ही जा रहा हूँ।।
कैसे गागर में सागर,
          लोग भरते हैं यहाँ?
अम्बर की ऊँचाईयों पर,
             पतंगें उड़ा रहा हूँ।।
नाव के सहारे नीर में,
            लहरों पर झूमते हुए,
मंजिलों को पीछे छोड़,
           व्यर्थ दौड़े ही जा रहा हूँ।।
गिरा तो उठा भी कभी,
           सम्भलने की कोशिश में।
आवेगों से उद्वेलित होकर,
           यूँ ही दास्तां बता रहा हूँ।।
यहाँ की झिलमिल रोशनी में,
          भटका हुआ पथिक बन।
शायद मिले कोई हमसफर,
        उसे ही खोजते जा रहा हूँ।।
           
रचयिता
रवीन्द्र शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बसवार,
विकास क्षेत्र-परतावल,
जनपद-महराजगंज,उ०प्र०।

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