खो गया है बचपन न जाने कहाँ

फिर वही बारिश की बूँदें हैं
फिर वही रिमझिम फुहार
फिर वही पकौड़ों की खुशबू है
फिर वही अदरक की चाय

नहीं है तो वो कागज की कश्तियाँ
नहीं हैं तो वो पानी में अठखेलियाँ
नहीं है अब वो लूडो, वो कैरम और वो शतरंज की चालें
नहीं है अब वो बैठकें, नहीं हैं अब वो ऊँच- नीच और वो लगड़ी टाँगें

अब तो याद भी नहीं वो दादी-नानी की कहानियाँ
अब तो याद भी नहीं वो जादूगर और वो नन्ही परियाँ

कहाँ गये वो बाइस्कोप, चोर- पुलिस और वो 'पोशम -पा'
अब तो रह गये बस कम्यूटर, मोबाइल और कैंडी क्रश सागा
कहाँ गये वो अचार - पराठे, वो झटपट रसना और वो घिसे हुये बरफ के गोले
अब तो रह गये बस पेप्सी, बर्गर, पिज्जा और कुल्चे छोले
कहाँ गये वो मोगली, विक्रम बेताल, चाचा चौधरी और डॉ0 झटका
रह गये अब शिनचैन, कैप्टन अमेरिका, नोबिता और शिज़ूका

खो गया है बचपन न जाने कहाँ
पूछता है हरपल बस एक ही सवाल..
अब क्यूँ नहीं वो पहले से घर आँगन ?
क्यूँ नहीं अब वो पहली सी
मस्ती और धमाल?

रचयिता
प्रीति सिंघल,
प्रधानध्यापक,
मॉडल प्राथमिक विद्यालय फरीदपुर,
ब्लाक-जवां,
जनपद-अलीगढ़।


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