रोज़ पढ़ता हूँ

"पढ़ाई करते हो?"
"हाँ ..साब .."
"कहाँ ...?"
"यहीं...

रोज़ तो पढ़ता हूँ उनके दिलों को
जो आते तो हैं बैठकर कारों में
पर मेरे १० रू के गुब्बारे
की कीमत 5 रू लगाते हैं,

रोज़ तो पढ़ता हूँ उन आँखों को
जो आते हैं खरीदने मेरे गुब्बारे
पर घूरते हैं मेरी बहन को ,

रोज़ तो पढ़ता हूँ उस बाप की आँखों को
जिसका बच्चा मचलता है
गुब्बारे लेने को पर वो
हाथ में बोतल लिए कल
का वादा कर देता है,

रोज़ पढ़ता हूँ उस मजबूर माँ की आँखें
जो अपने बच्चे को समझाती हैं
कि गुब्बारा तो उड़ जाएगा बेटा
चल कुछ और खरीदते हैं ,

और हाँ, रोज़ पढ़ता हूँ

उनके भी अरमानों को
जो मेरी पूरी फेरी ही खरीद लेते हैं
उनके लिए जिनका कोई नहीं इस दुनिया में
और स्वयं उनका भी कोई नहीं..शायद..दिला सकें जिनको वे गुब्बारे...रंग - बिरंगे गुब्बारे...!!

रचयिता
प्रीति सिंघल,
प्रधानध्यापक,
मॉडल प्राथमिक विद्यालय फरीदपुर,
ब्लाक-जवां,
जनपद-अलीगढ़।

Comments

  1. आपके विचार आपके मन की सुंदरता बयां करते हैं। बेहद शानदार रचना👌💐👍

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  2. बहुत ही प्रेरक रचना। वास्तविकता की विवशताओं का दर्शन।

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  3. आज पढ़ा कुछ खास

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मिशन शिक्षण संवार...आभार🙏

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  4. Bahut hi dil ko chhone wali rchna h

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