२८०~ पूर्णिमा मिश्रा प्राथमिक विद्यालय सुआगाड़ा द्वितीय वि०क्षे०- लखीमपुर, जिला-खीरी

🏅अनमोल रत्न🏅

मित्रों आज हम आपका परिचय मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से बेसिक शिक्षा की अनमोल रत्न बहन पूर्णिमा मिश्रा जी से करा रहे हैं। जिन्होंने अपनी सकारात्मक सोच तथा समर्पित स्वयंसेवी स्वभाव से अपने विद्यालय को समाज के बीच विश्वास का केन्द्र बना दिया।

जहाँ आज समाज में समाजसेवी और स्वयंसेवी कहलाने और बनने की मात्र इसलिए होड़ मची है कि वह अपने आपको समाज के सामने कैसे स्वयं को पेश कर स्वयंपेशी बन सकें। वहीं वन्दनीय बहन जी जैसे भी शिक्षा के उत्थान और शिक्षक के सम्मान के लिए तन, मन, धन से समर्पित स्वैच्छिक स्वयंसेवी हैं जो किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के पीछे न भाग कर, अपनी आत्मिक संतुष्टि और स्वाभिमान के लिए कार्य कर सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। यही कारण है कि ऐसे व्यक्तित्व किसी सम्मान और पुरस्कार को नहीं खोजते हैं बल्कि सम्मान और पुरस्कार स्वयं ऐसे व्यक्तित्व को खोजता घूमता है। इसीलिए ऐसे शिक्षक हम जैसे हजारों शिक्षकों के लिए प्रेरक, अनुकरणीय और वन्दनीय हैं जो हमें वास्तविक शिक्षकत्व की ओर ले जाते हैं।

आइये देखतें हैं आपके द्वारा किए गये स्वयंसेवी और प्रेरक प्रयासों को:-

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श्रीमती पूर्णिमा मिश्रा (प्र०अ०)
वर्तमान नियुक्ति- 08/8/2012
विभाग में नियुक्ति- 14/12/1999

जिस समय विद्यालय आई, तब यह एक आम साधारण सरकारी स्कूल की तरह नीरस सादी सफ़ेद दीवारों वाला एक भवन मात्र था। जहाँ कुछ बच्चे एक साथ बैठकर गिनती, पहाड़ा पढ़ रहे थे। यहाँ के शिक्षकों का नकारात्मक व असहयोग पूर्ण रवैया हैरान करने वाला था। मेरी निराशा इतनी बढ़ी कि मैं त्यागपत्र देने का पूरा मन बना चुकी थी। किन्तु मेरा पूरा परिवार मेरी इस निराशा को आशा में बदलने केलिए मेरे साथ खड़ा हो गया।
प्र०अ० के तौर पर मेरी पहली चुनौती छात्र संख्या-162 के अनुपात में छात्र उपस्थिति बढ़ाने की थी। मैंने अपने पति के साथ घर-घर अभिभावक सम्पर्क किया। मुझे उनको यह यकीन दिलाना था कि उनके बच्चों को विद्यालय में कुछ नया व बेहतर अब मिलेगा। अल्पसंख्यक बहुलता वाले गाँव में ज्यादातर अभिभावकों ने अपने बच्चों को काम करने में या दुकानों पर काम सीखने केलिए लगा रखा था। मुस्लिम बालिकाएँ घरों में काम करने व बच्चों की देखभाल के लिए रोक ली जाती थीं। मैंने दुकानों पर जाकर दुकानदारों को समझाया कि वे इनके अभिभावकों को समझायें कि बच्चों को विद्यालय समय में विद्यालय भेजें। काम विद्यालय समय के बाद भी सीखा जा सकता है दूसरी ओर मेरे पति ने गाँव के अलग -अलग मजरों में कैम्प लगाकर अभिभावकों को बच्चों को विद्यालय भेजने व नामांकन कराने के लिए प्रेरित किया।
मैंने अपने विद्यालय में हर साल समर कैम्प लगाना शुरू किया। जिसमें बच्चों को कम्प्यूटर, नृत्य, जूडो कराटे व मेंहदी का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। अभिभावक मीटिंग व अभिभावक सम्पर्क को शैक्षिक क्रियाकलाप का अभिन्न हिस्सा बना दिया गया। शुरुआत में अकेले ही सब किया पर शीघ्र ही नकारात्मक तत्व दूर होने लगे।
शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता व नारी सुरक्षा हेतु समय-समय पर समाज की जानी मानी हस्तियों को विद्यालय बुलाकर बच्चों व अभिभावकों को प्रेरित करवाने लगी। इसी बीच सन 2015 में मेरा विद्यालय अंग्रेजी माध्यम हेतु चयनित किया गया। और मुझे एक नई सहायिका यासमीन हुसैन मिली।
सबसे पहले छात्रों को यूनिफॉर्म के साथ टाई, बेल्ट, आई कार्ड्स देकर उन्हें कान्वेंट स्कूल जैसी अनुभूति कराई। फिर उन्हें नज़दीकी शहर के नामचीनी कान्वेन्ट स्कूल का भ्रमण कराया ताकि वे परिवेश देखकर स्वयं सीखें और स्वयं को बदलें।
विद्यालय में दो कक्ष, एक बरामदा, एक अतिरिक्त कक्ष विरासत में मिला था। लेकिन बाउन्ड्री व गेट न होने के कारण बरामदे में गन्दगी रोज सुबह जाने पर मिलती थी। अतः निज आय से बरामदे को लोहे की जाली से पूरा बन्द करा दिया गया। विद्यालय की दीवारों को कलरफुल रँगाई पुताई व इन पर आकर्षक पेंटिंग करवाई स्वयं के खर्चे से, क्योंकि पुताई के मात्र 5000 रुपये अपर्याप्त थे। बच्चों के चप्पलों व जूतों के लिए एक रैक स्वयं खर्चे से बनवाई। 2 ट्री गार्ड बनवा कर वृक्षारोपण किया। शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए गांव की एक ग्रेजुएट लड़की को विद्यालय आकर शिक्षण कार्य के लिए प्रेरित किया तथा निज वेतन से उसे 2 वर्ष तक पारिश्रमिक भी देती रही।
विद्यालय सम्बन्धी कठिनाइयों को नज़दीक़ से देखने के बाद पति द्वारा एक सामाजिक संस्था बचपन संवारों फाउंडेशन बनाई गई। जिसने न केवल मेरे विद्यालय बल्कि अन्य सरकारी स्कूलों में भी छात्र नामांकन उपस्थिति व ठहराव के लिए काफी कार्य किया।
गांव की महिलाओं व बेटियों के लिए बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान चलाया गया। समर कैंप में ही उनको आत्म निर्भर बनाने के लिए सिलाई प्रशिक्षण कुशल प्रशिक्षकों से दिलाया गया। उनके अभिप्रेरण के लिए कभी महिला डॉक्टर तो कभी महिला वकील और कभी महिला पुलिस को आमंत्रित किया।
मैंने स्वयं एक लैपटॉप खरीदा एक पोर्टेबल माइक सिस्टम जिससे बच्चों को राइम्स, नृत्य, गायन व आर्ट एन्ड क्राफ्ट शिक्षण में बड़ी मदद मिली। विद्यालय के हर कक्ष में एक्टिविटी बोर्ड निजी व्यय से बनवाये जिस पर वीकली या मन्थली ऐक्टिविटीज़ को दर्शाया जाता है। मैंने एक कक्ष में निजी व्यय से बच्चों के खेलने के लिए बेंचों की भी व्यवस्था की।
छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें विभिन्न स्कूलों व संस्थाओं के मंचों पर उनकी प्रतिभा को निखारने व आत्म विश्वास में वृद्धि के लिए प्रतिभाग कराना शुरू किया। मेरे विद्यालय के छात्रों ने नाटक प्रतियोगिता व कला प्रतियोगिता में द्वितीय व नृत्य व मेहँदी प्रतियोगिता में प्रोत्साहन पुरस्कार तथा सौजन्या सामाजिक संस्था के एक कार्यक्रम में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, नाटक मंचन किया।

मैं प्रतिवर्ष अपने विद्यालय का वार्षिकोत्सव करती हूँ ताकि अभिभावक अपने बच्चों की उपलब्धियों पर आनन्दित हों और समाज के अन्य गणमान्यों के आगे अच्छे अभिभावक व अच्छे छात्रों को पुरस्कृत भी करती हूँ। यह वार्षिकोत्सव दीपावली के आसपास करती हूँ। जिससे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा एक आर्ट क्राफ्ट व मिट्टी के हस्त निर्मित दीयों व खिलौनों की प्रदर्शनी लगाई जा सके। इसमें गांव, शहर, शिक्षा विभाग व अन्य विभागों के लोगों को आमन्त्रित करती हूँ । इससे एक ओर अभिभावकों के हस्तनिर्मित दियों व खिलौनों की खूब बिक्री हो जाती है। तो दूसरी ओर छात्रों की सांस्कृतिक प्रस्तुति, आर्ट क्राफ्ट प्रदर्शनी में उन्हें अपनी प्रतिभा प्रदर्शन का भरपूर अवसर मिलता है। मेरा यह अनूठा प्रयोग जिले में प्रशंसा व चर्चा का विषय रहता है। इस तरह अभिभावकों को जहाँ लगता है कि दीदी जी उनकी मदद करती हैं वहीं अपने बच्चों को पुरस्कृत होते देख खुशी भी होती है। एक आत्मीय बंधन से महसूस होता है और अब छात्र नामांकन 235 और दैनिक उपस्थिति 180-190 के आसपास रहती है।

समाज के द्वारा मेरे प्रयासों को सराहा गया। और शहरी व ग्रामीण की दूरी को पाटते हुए शहर के लोगों द्वारा विद्यालय में उस समय स्कूल बैग, स्वेटर व जूते उपलब्ध कराए गए। जब सरकार द्वारा ये चीजें नहीं प्राप्त हो रही थी। आज समाज के सहयोग से विद्यालय में इन्वर्टर, प्रोजेक्टर तथा एक कक्ष में फ्लोर मैट भी लग चुकी है।
विद्यालय में योग शिक्षा की भी व्यवस्था की है। शहर की प्रसिद्ध नैचुरोपैथी डॉक्टर शालू गुप्ता जी हफ्ते में 3 दिन योग के लिए आती हैं। विद्यालय में आई व डेंटल चेकअप प्रतिवर्ष शहर से प्रसिद्ध डॉक्टरों को बुलाकर करवाती हूँ। इसके अलावा विद्यालय में हर त्योहार व जयन्ती को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। प्रतिवर्ष क्रिसमस पर विद्यालय का एक छात्र सेंटा बनता है। और एक गाड़ी सजाकर गांव से शहर के मुख्य चर्च तक वह सेंटा और कुछ छात्रों को मैं ले जाती हूँ, जो रास्ते में दूसरे बच्चों को टॉफियां व बिस्किट बाँटता है। तथा कुछ कार्ड्स देता है। जिनमें स्वच्छता व पर्यावरण के सन्देश लिखे होते हैं। मेरे विद्यालय में क्रिसमस उत्सव में शहर के नामचीनी कान्वेन्ट स्कूल डॉन बॉस्को के फ़ादर व बेसिक शिक्षा अधिकारी आ चुके हैं।
प्राथमिक शिक्षा के उन्नयन व प्रचार प्रसार के लिए ऐसे ही कार्यक्रमों के माध्यम से मैंने जिला स्तर पर अनेक पुरस्कार व सम्मान प्राप्त किया हैं। हिंदुस्तान समाचार पत्र द्वारा उ०प्र० सरकार के संयोजन में मुझे मलाला पुरस्कार मिला। उद्योग व्यापार मण्डल द्वारा उनके एक कार्यक्रम में महामहिम राज्यपाल श्री राम नाईक द्वारा सम्मानित किया गया। नगर पालिका अध्यक्ष द्वारा सेवा समिति, रोटरी क्लब द्वारा भी सम्मानित व पुरस्कृत किया गया।

मेरा एक ही लक्ष्य है, प्राथमिक शिक्षा का पुराना गौरव पुनः वापस लाना। शिक्षक छात्र का भाग्य विधाता है। उसे किसी के भविष्य को सुधारने का मौका मिलता है, इसे व्यर्थ न जाने दें। अभिभावक व बच्चों के साथ आत्मीय सम्बन्ध आपके विद्यालय को बच्चों से भर देगा और अच्छा शिक्षण आपके जीवन को आत्मिक सुख व शान्ति से भर देगा।

पूर्णिमा मिश्रा
प्राथमिक विद्यालय सुआगाड़ा द्वितीय
वि०क्षे०- लखीमपुर, जिला-खीरी।

संकलन: आशीष शुक्ला
टीम मिशन शिक्षण संवाद

👉नोट:- आप अपने मिशन परिवार में शामिल होने, आदर्श विद्यालय का विवरण भेजने तथा सहयोग व सुझाव को अपने जनपद सहयोगियों को अथवा मिशन शिक्षण संवाद के वाट्सअप नम्बर-9458278429 और ई-मेल shikshansamvad@gmail.com पर भेज सकते हैं।

निवेदक: विमल कुमार
03-12- 2018

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