३३-राहुल चौधरी, प्रा० वि० बिरौली सिरौली, गौशपुर, बाराबंकी

मित्रों आज हम बेसिक शिक्षा की धारा को अनवरत प्रवाहित रखने का प्रयास करने वाले शिक्षकों में से एक शिक्षक भाई राहुल चौधरी जनपद- बाराबंकी से परिचय करा रहे हैं। जिन्होंने अपने बचपन के विद्यालय और अपने गुरुओं के ऋण को समय आने पर उतारने को बखूबी निभाया और भविष्य के लिए भी दृढ़ संकल्पित है।
एक ओर जहाँ अनेकों शिक्षक भाई बहन शिक्षक के अतिरिक्त सब कुछ बनकर बेसिक शिक्षा में स्वर्णयुग लाकर समस्या विहीन करना चाहते हैं। लेकिन जब से शिक्षक, शिक्षक के अतिरिक्त सब कुछ बनने को लालायित रहने लगा। तब से शायद शासन को उसकी बौद्धिक क्षमताओं पर भी अविश्वास दिखाई देने लगा है जिन्हें हम विभिन्न आदेशों और शासनादेश से देख और समझ सकते हैं। वहीं हमारे बहुत से शिक्षक साथी अनेकों विषम परिस्थितियों में भी शिक्षक बने रहने में संकोच नहीं करते हैं। भले ही वह आज अल्पमत में दिखाई देते हों लेकिन भविष्य और समय ऐसे गुरुओं का सदैव रक्षक रहा है और रहेगा भी।
हमारा भी यही मानना है कि यदि आप शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के प्रति सजग हैं तो सब कुछ बनने के पहले शिक्षक बनना पड़ेगा। आज या कल। क्योंकि समय परिवर्तनीय है जो आपके बदलने का इन्तजार नहीं करेगा। आपको बदलकर रख देगा। जहाँ से दुबारा वापसी असम्भव भी हो सकती है। इसलिए आओ शिक्षक बनें।
आइए जानते हैं एक शिक्षक के रूप में आपके प्रयासों को आपके शब्दों में ही--
मैं राहुल चौधरी मूल रूप से मऊ जनपद का निवासी हूँ। हमारी नियुक्ति फरवरी-2009 में प्राथमिक विद्यालय बिरौली, सिरौली गौसपुर, बाराबंकी में हुई। उस समय विद्यालय की स्थिति ऐसी थी कि विद्यालय में ब्लैकबोर्ड भी नहीं थे। फर्श और दिवारें सब टूटी- फूटी और बदरंग थे। परिसर में जल भराव रहता था। हमारी बचपन की शिक्षा एक आदर्श विद्यालय में हुई थी। इसलिए विद्यालय का मतलब वही छवि बनी हुई थी। इसलिए हमने इसे उसी के अनुसार बनाने का प्रयास शुरू किया। पहले ब्लैकबोर्ड बनवाये, दिवारों पर प्लास्टर करवाया और जल भराव की जगह मिट्टी का भराव करवाया। इसके बाद वन विभाग के सहयोग और सम्पर्क से परिसर में चारों तरफ कदम्ब के पेड़ लगवाये। विद्यालय में  गतिविधियों के लिए खेलकूद सामग्री लाये, TLM आदि निर्माण कराके। बच्चों में प्रतियोगिता की भावना विकसित की, जिससे वह प्राइवेट स्कूलों से बराबरी कर सकें। कुछ ही समय में विद्यालय के बच्चों को प्राइवेट वालों के बराबर पाकर गाँव के लोगों और अभिभावकों में विद्यालय के प्रति सोच में परिवर्तन होने लगा और विश्वास बढ़ गया। जिससे बच्चों की उपस्थिति पर बहुत अच्छा असर हुआ। आज हमारे विद्यालय में पाँच सहयोगी शिक्षकों का स्टाफ है। जिनके प्रयास से विद्यालय की सभी गतिविधियाँ अच्छे ढंग से की जाती हैं। जैसे- चित्रकला, पुरस्कार वितरण, बाल मेला, रंगोली, सिलाई आदि अनेकों सिखाई जाती हैं। इन सब कामों में ज़रीना अज़ीज बहन जी का सराहनीय योगदान रहता है। इन सब कामों से वर्तमान में हमारा विद्यालय ए ग्रेड में है। जहाँ की छात्र संख्या लगभग 260 के लगभग रहती है।
हमारा मानना है कि-
"मित्रों हमें अपना काम पूरी इमानदारी से करना चाहिए। मेरा सूत्र वाक्य है- श्रेय मिले न मिले, अपना श्रेष्ठ देना कभी बन्द न करें, ऐसा कभी न सोचें कि आप की मेहनत बेकार जायेगी, उत्साही बनें, स्वयं को तथा दूसरों को अच्छा करने के लिए प्रेरित करते रहें।
धन्यवाद
राहुल चौधरी बाराबंकी
मित्रो आपने एक सजग शिक्षक के विचारों को जाना, जो बहुत से सकारात्मक सोच और ऊर्जा से भरे हुए हैं। बेसिक शिक्षा को आज ऐसे ही शिक्षा सेनानियों की जरूरत है।
मिशन संवाद की ओर से सम्पूर्ण विद्यालय परिवार को बहुत- बहुत शुभकामनाएँ!
☆मिशन संवाद☆
मित्रो यह एक शिक्षक से शिक्षक और शिक्षक से समाज के बीच अपने अच्छे कार्यों को पहुँचाने का माध्यम  मिशन संवाद है।
जिसका उद्देश्य एक दूसरे से संवाद के माध्यम से सीखना सिखाना तथा शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के लिए बेसिक शिक्षा से नकारात्मक माहौल को कम से कम करते हुए समाज के बीच बेसिक शिक्षा और शिक्षक के प्रति विश्वास पैदा करना है।
इसमें सहयोग के लिए आप स्वयं और अपने आसपास के गुमनाम शिक्षा के लिए काम करने वाले शिक्षकों और विद्यालयों की गतिविधियों और उपलब्धियों का फोटो सहित विवरण हमारे पास भेज कर शिक्षा एवं शिक्षक  सम्मान के भागीदार और रक्षक बनें। क्योंकि बुराई स्वप्रचारित होती है लेकिन अच्छाईयों को समाज के सामने लाने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। इसलिए आप भी अपना विवरण भेजने में संकोच न करें।
विवरण भेजने के लिए मिशन संवाद का WhatsApp No- 9458278429 है।
साभार : शिक्षण संवाद एवं गतिविधियाँ
आपका सहयोगी  शिक्षक
विमल कुमार
कानपुर देहात
05/07/2016

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