५५- सतीश कुमार सिंह, प्रा० वि० आदर्श रकौली, मऊ

मित्रों आपको आज के परिचय में एक ऐसे सम्मानित शिक्षक से मिला रहे हैं। जिनके जीवन की कहानी एक शिक्षक के रूप में कहानियों की भी कहानी है। क्योंकि जहाँ हम उन कुछ आधुनिक धनाढ्यों की कभी- कभी गौरव गाथा सुनते हैं, जो शिक्षक के अतिरिक्त सब कुछ बनें रहना चाहते हैं अथवा जिन्होंने अपने गर्व और घमण्ड से अपने शिक्षक पद को एक दासी की भाँति वेतन देने वाली नौकरानी तथा इस देश के कानून को गुलामों की भाँति बन्धक बना कर रखा है। जबकि उनको भली भाँति पता होगा कि समय और मौत किसी के साथ अन्याय नहीं करता है वहाँ न सत्ता की सिफारिश चलती है और न ही व्यवस्था की रिश्तेदारी चलती है।
वहीं कुछ आप जैसे शिक्षक भी हैं जिनके पास क्या नहीं है। शक्ति है, सम्पन्नता है, यश है,कीर्ति है,वैभव है, फिर भी एक आदर्श शिक्षक बन कर गाँव और गरीब परिवार के बच्चों के बीच परमानन्द की प्राप्ति कर, शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के लिए समर्पित रहते हैं।  ऐसे राष्ट्रभक्त, सकारात्मक सोच और ऊर्जा के धनी आदर्श शिक्षकों को मिशन संवाद बारम्बार नमन करता है। जिन्होंने हम जैसे हजारों शिक्षकों को एक सूत्र वाक्य दिया कि-- "बस एक बार शिक्षक की भूमिका में भी आकर देखो„
आपको इसी सूत्र वाक्य ने एक आम शिक्षक से खास और प्रदेश का आदर्श शिक्षक बना दिया।
तो आइये जानते है हृदय और जीवन परिवर्तन की कहानी स्वयं सतीश जी के शब्दों में---https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1745349069076016&id=1598220847122173
मित्रो,
सच ये है कि मैंने 1999 में कार्यभार ग्रहण करने के बाद से लगभग 10 वर्षों तक पढ़ाने के नाम सिर्फ नौकरी और नेतागीरी की। क्योकिं सेवा में आते ही शिक्षक संघ से जुड़ गया और एक अनचाहा सा सफ़र शुरू हुआ, शिक्षक समस्याओं के समाधान हेतु संघर्ष के स्वांग का। स्वांग था, उस समय मुझे नहीं पता था, इसलिए बड़े ही क्रन्तिकारी रूप में मैंने लगभग 6 वर्ष अपने जनपद को नेतृत्व प्रदान किया। बाद में पता चला कि मैं छद्मवेशी नेताओं की घटिया निति का शिकार हो गया हूँ। परंतु मैंने अपना दामन साफ रखा इसलिए मेरी व्यक्तिगत छवि आक्रामक तो बनी परंतु शिक्षकों की नजर में ईमानदार भी बनी रही। और इससे घबराकर मुझे कठिन चक्रव्यूह में फंसा दिया नेताओं ने, तमाम आरोपों के साथ लापरवाही के चलते मैं अपने चार साथियों के साथ एक शिक्षा अधिकारी को उसके कार्यालय में मारने पीटने के आरोप में फंस गया। हम चार लोग निलंबित हुए और मुकदमा भी दर्ज हुआ। मेरे साथ के 3 शिक्षक साथियों को सेवा से बर्खास्त भी होना पड़ा। शिक्षक संघ ने हमारा साथ यूँ छोड़ दिया जैसे हम अवांछित और अश्पृश्य हों। जनपद के शिक्षक, जिनके लिए मैं लड़ता रहा वो हमारी परछाई से भी दूर भागते रहे। हमसे कोई बात तक नहीं करना चाहता था , लेकिन फिर भी मैं लड़ता रहा, अपने तीनों साथियों को मात्र 6 माह के अंदर सेवा में बहाल कराया। फिर खुद को बहाल कराते हुए उन शिक्षा अधिकारी को निलंबित कराया और संघ को नमस्ते कर अपने उन्हीं कुछ साथियों के साथ एक तरफ खड़ा हो गया। ये लंबी कहानी है, छोटा करते भी ज्यादा हो गया।
फिर भी पिछले कर्म तो साथ चलते ही हैं, अधिकारी नाराज थे। ये अलग बात है कि इतने संघर्ष के बाद सामने कोई प्रतिक्रिया नहीं करते थे। मुझे बहाल करके जनपद के सबसे ख़राब गाँव के सबसे बदनाम विद्यालय पर भेजा गया, शायद उनकी सोच ये थी कि कुछ इसे गाँव के लोग ठीक करेंगे और उनके सहारे हम लोग। स्कूल पर मात्र एक शिक्षा मित्र थी। कुछ दिनों तक मैं बहुत परेशान था, सचमुच गाँव वाले उदंडता की हद तक बदतमीज थे और स्कूल, खंडहर से ज्यादा कुछ भी नहीं, भूत बंगला था बिलकुल। मैं वहां से हटने के उपाय लगा रहा था, चूँकि संघ छोड़ चूका था और विरोध कड़ा था इसलिए मज़बूरी में स्कूल में रहना ही था। मैं कोई ऐसा विद्यालय तलाश रहा था जो मेरे कुछ हद तक अनुकूल हो। उसी समय एक उर्दू अध्यापिका विद्यालय पर पदस्थापित हुई और मेरे बेजुबान प्रधानाध्यापक जी सेवा निवृत्त हो गए। विद्यालय का चार्ज मेरे पास आ गया। उसी समय मैं लखनऊ में अपने 2 शिक्षाधिकारी मित्रों के पास था, अपने स्थानांतरण को लेकर। मैंने उनसे कहा, मुझे अच्छा विद्यालय दिलाओ, मैं कुछ दिनों तक पढ़ाना चाहता हूँ, एकदम शांति से। चर्चा के दौरान भगवती सिंह जी ने कहा, विद्यालय का चार्ज तुम्हारे पास है, उसके मालिक तुम हो, उस विद्यालय पर कुछ परिवर्तन करके दिखाओ फिर तुम जहाँ कहोगे वहाँ रखवायेंगे। अजय सिंह जी ने सिर्फ इतना कहा कि तुमको कई भूमिकाओं में देख चुके और हम तुम्हारी हर भूमिका से संतुष्ट हैं, पर एक बार मुख्य भूमिका में देखने की इच्छा है।
"एक बार शिक्षक बनकर दिखा दो बस"
मुझे यही आदर्श वाक्य मिल गया।
" एक बार शिक्षक"
मैं वापस आया, सोचकर चला की मुझे शिक्षक बनना ही है। कई दिन विद्यालय पर बैठ कर सोचता ही रह गया, शुरू कहाँ से करें? विद्यालय में 5 टूटे - फूटे कमरों के अलावा कुछ भी नहीं था। एक दिन यूँ ही हमारी शिक्षिकाओं ने आकर कहा की सर किसी तरह विद्यालय में एक टॉयलेट बनवा दीजिये, हम लोगों को दिक्कत होती है। मुझे भी उचित लगा परंतु विद्यालय के किसी भी मद में एक भी पैसा नहीं था। कुछ सोचते हुए मैंने अपने एक धनाढ्य मित्र से चर्चा किया और जाने क्यों उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से विद्यालय पर स्वयं आकर एक शौचालय बनवा दिया। और जैसे उन्होंने मुझे दिशा दे दिया। कुछ दिन बाद चर्चा के दौरान  मेरे विद्यालय की उर्दू शिक्षिका सदफ कौसर ने कहा, कि सर आप किसी अच्छे विद्यालय पर क्यों जाना चाहते हैं? क्या हम लोग इसी विद्यालय को अच्छा नहीं बना सकते?? उसके शब्दों ने मुझे ऊर्जा के साथ सोचने के लिए पुनः एक नई दिशा प्रदान कर दिया। सदफ कौसर ने बच्चों को पढ़ाने का कार्य संभाला और मैंने विद्यालय को नया स्वरुप प्रदान करने का प्रयास करने का। शुरुआत मैंने अपने वेतन से किया, पुरे विद्यालय की मरम्मत, रंगाई पुताई आदि में कब कितना खर्च कर बैठा मुझे खुद पता नहीं। जुलाई 2012 में विद्यालय का चार्ज लिया था उस समय विद्यालय में उपस्थित होने वाले मात्र 9 बच्चे, नामांकित 26 थे। केवल 7 महीने के परिश्रम ने विद्यालय का नामांकन 115 किया और उपस्थिति 75 से 80 के बीच। इस परिवर्तन और सदफ की मेहनत ने मेरा उत्साह बढ़ाया। मैं नियमित विद्यालय पर रहने लगा और धीरे धीरे बच्चों से जुड़ने लगा, फिर मुझे दिखने और समझ में आने लगा कि किस बच्चे की क्या समस्या है और उसके समाधान के क्या प्रयास उचित होंगे। फिर जैसे ही बच्चों से जुड़ाव हुआ, मेरा मन होने लगा उनके साथ बैठने, उनसे बात करने, उन्हें पढ़ाने कुछ बताने का। और फिर जैसे जैसे उन मासूमों को पढ़ाने, समझाने के बीच समस्याएं खड़ी होतीं, मैं उनके समाधान के तरीके ढूंढने लगता। धीरे धीरे मैंने काफी योजनाएँ बना लीं, जैसे एक जूनून सा सवार था की इस विद्यालय को बदल देना है। गरीब असहाय बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा की सुविधा प्रदान कर देनी है। और मैंने अपने मित्रों को विद्यालय पर बुलाना शुरू किया। वो आते, विद्यालय में मेरे साथ बैठकर चाय पीते और मैं किसी न किसी प्रकार उन्हें उस विद्यालय के अभावग्रस्त बच्चों की तकलीफों से अवगत कराता। फिर उद्देश्य भी पूरा हुआ मेरा। मेरे किसी मित्र ने बच्चों को स्वेटर देना शुरू किया, किसी ने जूते, कुछ मैं बच्चों के ड्रेस के पैसे से बचाकर कापी किताबें, पेन्सिल आदि उपलब्ध कराता, कोई डेस्क बेंच दे गया। कोई आकर दस पांच हजार रुपये दे जाता। ग्राम प्रधान भी इन कार्यों को देखकर उत्साहित हुआ तो विद्यालय की वाउण्ड्री ऊँची हो गई, सबमर्सिबल पम्प के साथ वाटर सप्लाई की व्यवस्था हुई। हमने बच्चों के साथ मिलकर विद्यालय परिसर को पौधों से सजाना शुरू किया। विद्यालय में बच्चों की संख्या बढ़ती गई और उसी के साथ मेरा उत्साह। सदफ कौसर की मेहनत ने विद्यालय का शैक्षिक वातावरण मजबूत किया और अब हमारा विद्यालय जनपद का एकमात्र विद्यालय है जहाँ बच्चों को लैपटॉप, प्रोजेक्टर, इंटरनेट, डिश टी वी, आदि की सभी सुविधाएँ प्राप्त हैं और हमारी देखरेख में इन उपकरणों का संचालन भी बच्चे ही करते हैं। विद्यालय में बच्चों को खेलकूद के साथ संगीत सीखने की सुविधा प्राप्त है। हमने एक परंपरा की शुरुआत किया था कि हम हर त्यौहार, ईद, दशहरा, दीपावली, होली सब विद्यालय में बच्चों के साथ मनाएंगे और वो अनवरत जारी है। हमारे परिवार के बच्चों का जन्मदिन भी हम अपने विद्यालय के बच्चों के साथ ही मनाते हैं साथ ही बच्चों का नियमित रूप से जन्मदिन भी।
इन सब कामों से गाँव के साथ शहर से भी सम्मान मिलने लगा, मेरा मनोबल बढ़ने लगा, मैंने प्रयास शुरू किया और अब मेरे विद्यालय से रोटरी क्लब, इनरव्हील क्लब, के साथ अन्य कई सामाजिक संस्थायें भी जुड़ चुकी हैं और नियमित रूप से सभी का सहयोग मिल रहा है। आज बच्चों की नामांकन संख्या 234 है और समय गुजरे मात्र 3 वर्ष। कभी जनपद का सबसे बदनाम विद्यालय, आज जनपद का उत्कृष्ट विद्यालय चयनित हुआ है। इसके पूर्व विद्यालय आई सी टी के राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भी चयनित हो चूका है तथा सामुदायिक सहयोग के माध्यम से विद्यालय के विकास के लिए एन सी ई आर टी द्वारा सम्मानित भी किया जा चूका है। मित्रों ईश्वर ने स्वस्थ रखा तो मेरा उद्देश्य सत्र 2016-17 समाप्त होने तक इस विद्यालय को पूरी तरह , शत् प्रतिशत डिजिटल बना देने का है। मैं इसे देश का पहला पूर्ण डिजिटल प्राथमिक विद्यालय बनाना चाहता हूँ। विद्यालय को आधुनिक सुविधाओं से समृद्ध करूँगा। मेरा उद्देश्य पूर्ण हो रहा है। अन्यान्य लोगों से प्राप्त 4 प्रोजेक्टर और अन्य सामग्री विद्यालय पर रखी जा चुकी है। बस उद्घाटन के समय का इन्तजार है।
विद्यालय से सम्बंधित अन्य जानकारियों के लिए फेसबुक पर ADARSH RAKAULI MAU देख सकते हैं। धन्यवाद
सतीश कुमार सिंह
प्रा० वि० आदर्श रखौली
जनपद- मऊ
मित्रो आपने देखा कि एक शिक्षक को शिक्षा के उत्थान में जो आनन्द मिलता है दुनियाँ के अन्य किसी काम में नहीं।
मिशन संवाद परमात्मा से प्रार्थना करता है कि आपकी शिक्षा के उत्थान के लिए सभी प्रयास पूर्ण हों, साथ ही समस्त विद्यालय परिवार को उज्ज्वल भविष्य की बहुत - बहुत शुभकामनाएँ!
मित्रों आप भी यदि बेसिक शिक्षा विभाग के सम्मानित शिक्षक हैं तो इस मिशन संवाद के माध्यम से शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के लिए हाथ से हाथ मिला कर अभियान को सफल बनाने के लिए इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में सहयोगी बनें और शिक्षक धर्म का पालन करें। हमें विश्वास है कि अगर आप लोग हाथ से हाथ मिलाकर संगठित रूप से आगे बढ़े तो निश्चित ही बेसिक शिक्षा से नकारात्मकता की अंधेरी रात का अन्त होकर रोशनी की नयी किरण के साथ नया सबेरा आयेगा।
हम सब हाथ से हाथ मिलायें।
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ायें।।
नोटः- यदि आप या आपके आसपास कोई बेसिक शिक्षा का शिक्षक अच्छे कार्य कर शिक्षा एवं शिक्षक को सम्मानित स्थान दिलाने में सहयोग कर रहा है तो बिना किसी संकोच के अपने विद्यालय की उपलब्धियों को हम तक पहुँचाने में सहयोग करें। आपकी ये उपलब्धियाँ हजारों शिक्षकों के लिए नयी ऊर्जा और प्रेरणा का काम करेंगी। इसलिए बेसिक शिक्षा को सम्मानित स्थान दिलाने के लिए हम सब मिशन संवाद के माध्यम से जुड़कर एक दूसरे से सीखें और सिखायें। बेसिक शिक्षा की नकारात्मकता को दूर भगायें।
*उपलब्धियों और गतिविधियों का विवरण और फोटो भेजने का WhatsApp no- 9458278429 है।*
साभार: शिक्षण संवाद एवं गतिविधियाँ
 
विमल कुमार
कानपुर देहात
26/07/2016

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