पुत्री के नाम पिता का पत्र (प्रांजल सक्सेना बरेली)

प्रिय  पुत्री ,
11  मार्च  2015  ये  दिन  खास  था , हम  दोनों  के  लिए । बहुत  प्रतीक्षा  कराने  के  बाद  आखिरकार  तुम  मेरे  जीवन  में  आ  ही  गईं । आज  तुम्हारे  लिए  कुछ  लिख  रहा  हूँ । जानता  हूँ  कि  अभी  तुम  इसे  पढ़  नहीं  सकतीं । इसे  कुछ  वर्षों  बाद  पढ़  पाओगी  और  समझ  और  भी  देर  में  पाओगी । पर  ये  बातें  चिरस्थायी  हैं , जब  भी  पढ़ोगी  तब  भी  इनमें  ताजगी  रहेगी ।
तुमने  जीवन  में  आते  ही  एक  बहुत  बड़ा  काम  किया  है । तुमने  मुझे   उन  लाखों  बिन  माँगी  दुआओं  के  बोझ  से  मुक्त  किया  है  जो  मुझे  मिली  थीं  कि  मुझे  लड़का  होगा ।
मेरी  बच्ची  ये  दुनिया  एक  बहुत  बड़ा  कैनवास  है , जिस  पर  पेंटिंग  करने  प्रतिदिन  कुछ  कलाकार  आते  हैं । तुम  भी  उनमें  से  एक  हो । ये  पेंटिंग  न  कभी  पूरी  हो  पाई  है  और  न  ही  कभी  पूरी  हो  पाएगी । इस  पेंटिंग  में  रंग  भरने  वाले  कुछ  अच्छे  कलाकार  होते  हैं  और  कुछ  बहुत  बुरे । इसीलिए  ये  पेंटिंग  न  कभी  अच्छी  हो  पाती  है  और  न  ही  बहुत  बुरी । बस  परिवर्तनशील  रहती  है । तुम  इस  कैनवास  में  रंग  भरना  अच्छे  से  अच्छे  क्योंकि  यही  तो  जीवन  का  उद्देश्य  है । इस  दुनिया  में  कई  लोग  ऐसे  भी  हैं  जो  इस  कैनवास  पर  सिर्फ  रंग  बिखेरने  का  काम  करते  हैं  हो  सके  तो  उनकी  गलतियों  को  भी  सुधारना ।
इस  दुनिया  में  जिन्दा  रहने  में  कोई  आनन्द  नहीं , हाँ  पर  जीने  में  है । धारा  के  विपरीत  चलना  सदैव  से  ही  एक  रोमांचक  अनुभव  होता  है । मैं  प्रतिदिन  इसका  आनंद  उठाता  हूँ , तुम  भी  उठाना । जीवन  का  एक  और  भी  सत्य  है  कि  जीवन  में  अनेक  दु:ख  भी  आएँगे । उनसे  छुटकारा  पाने  का  प्रयास  करना  पर  उन्हें  कोसना  मत  क्योंकि  दु:ख  स्वयं  में  ही  एक  दरिद्र  पथिक  है  जो  हर  घर  में  आसरा  ढूँढता  है । थोड़े  दिन  के  ठहराव  से  दु:ख  का  दु:ख  कम  होता  है । वो  आएगा  तो  बिन  बुलाए  पर  तुम्हारी  मुस्कुराहट  से  सिर  पर  पैर  रखकर  भाग  भी  जाएगा ।
जीवन  में  किसी  भी  कार्य  को  बोझ  मानकर  मत  करना । बल्कि  एक  कलाकार  बनकर  करना , उस  काम  का  आनन्द  लेना । ढेर  सारा  सृजन  करना , क्योंकि  कोई  भी  सृजन  दुनिया  का  सबसे  सुंदर  और  अद्भुत  अनुभव  देता  है ।
बिटिया  जीवन  जीना  कोई  यांत्रिक  प्रक्रिया  नहीं  है । जहाँ  पर  मात्र  धन  कमाने  के  लिए  जिया  जाए  और  ढेर  सारी  भौतिक  वस्तुओं  को  एकत्र  किया  जाए । तुम  इस  बात  को  समझना  कि  तुम  इस  दुनिया  में  इसलिए  नहीं  आईं  कि  महँगे  वाले  फ्रिज  से  ठण्डा  पानी  पीकर  या  फिर  लग्जरी  कार  में  कहीं  जाकर  बाकि  लोगों  को  अपना   श्रेष्ठ  जीवन  स्तर  दिखाना  है । जीवन  की  वास्तविकता  इससे  कहीं  आगे  है । तुम  यहाँ  इसलिए  आई  हो  ताकि  खुशियाँ  बाँट  सको  और  पाओ  भी । जीवन  में  बिना  किसी  भौतिक  वस्तु  के  भी  बहुत  आनन्द  है । ऐसा  मेरा  निजी  अनुभव  है । इसलिए  जीवन  में  कभी  तुम्हारे  पास  कुछ  न  हो  उसके  लिए  दुःखी  मत  होना , बल्कि  जो  अनन्त  वस्तुएँ  हैं  उनके  प्रति  प्रसन्न  होना । भले  ही  वो  राह  में  खड़े  किसी  पेड़  की  छाया  ही  क्यों  न  हो ।
ऐसा  कहते  हैं  कि  84  लाख  प्रजातियों  में  जन्म  लेने  के  बाद  एक  बार  मानव  बनने  का  अवसर  मिलता  है । उन  सभी  84  लाख  जन्मों  से  सीखने  के  लिए  बहुत  कुछ  है । इस  बात  को  सीखना  कि  आकाश  में  उड़ने  वाले  परिंदे  कभी  धन  कमाने  के  बारे  में  नहीं  सोचते । तुम्हारा  सामना  लालच , ईर्ष्या  और  जलन  से  भरे  कई  लोगों  से  होगा । पर  फिर  ये  न  भूलना  कि  निश्छलता  सर्वश्रेष्ठ  गुण  है ।
तुम्हारे  पास  एक  बहुत  प्यारा – सा  हृदय  है , जो  किसी  को  दिखता  नहीं  है । दरअसल  वो  जख्मों  को  छुपाने  की  जगह  है । हाँ  तुम्हारा  चेहरा  सब  देख  सकते  हैं , वहाँ  पर  ढेर  सारी  मुस्कान  बनाए  रखना , विपरीत  से  विपरीत  परिस्थितियों  में  भी । मस्तिष्क  से  दिन – प्रतिदिन  बड़ी  होना , पर  हृदय  से  कभी  नहीं । जीवन  में  सफलता  पाने  के  लिए  खूब  मेहनत  करना  पर  उसके  न  मिलने  पर  अवसाद  में  न  चली  जाना , क्योंकि  सफलता  बहुत  ही  अस्थिर  वस्तु  है ।
मैं  तुमसे  कभी  भी  डॉ  या  इंजीनियर  या  किसी  बहुत  बड़े  पद  को  पाने  के  लिए  नहीं  कहूँगा । बल्कि  एक  ऐसा  शिष्य  बनने  को  कहूँगा  जो  निरन्तर  सीखता  रहे । केवल  पुस्तकों  से  नहीं  बल्कि  पलक  के  झपकने  से  भी ।
जीवन  में  निखार  लाने  का  सबसे  सरल  मार्ग  है  स्वयं  को  जानने  की  कोशिश  करना । ' मैं  कौन  हूँ ' अगर  इस  प्रश्न  को  अपना  बना  लिया  तो  जीवन  आनन्दमय  हो  जाएगा । अनावश्यक  स्वार्थों  से  स्वतः  ही  दूरी  बन  जाएगी । इस  प्रश्न  का  उत्तर  तो  कभी  न  मिलेगा  पर  इसका  उत्तर  खोजने  में  बहुत  कुछ  मिलेगा  जैसे  चरित्र  की   उत्कृष्टता  और  व्यक्तित्त्व  का  परिष्करण   ।
मुझे  ये  तो  नहीं  पता  कि  मैं  और  तुम  कब  तक  साथ  रहेंगे । पर  हाँ  मेरे  बाद  भी  आजीवन  ये  पत्र  तुम्हारे  साथ  रहेगा । तुमसे  बातें  करने  को , तुम्हें  संबल  प्रदान  करने ।
अंत  में  बस  यही  कि  मुझे  उस  पल  की  प्रतीक्षा  रहेगी  जब  तुम  इस  पत्र  का  उत्तर  लिखोगी ।
तुम्हारा  भाग्यशाली  पिता ।

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