ज्योतिबा का स्वप्न

 सदियों की जंजीरें तोड़ी

अंधकार में ज्योति जोड़ी।

किताबों से भरी पोटली

फुले थे समाज के प्रहरी।


दलितों को अधिकार दिलाया

नारी को सम्मान दिलाया।

छूआछूत की रीत मिटाई

हर मन में उम्मीद जगाई।


झोपड़ियों में दिया जलाया

ज्ञान का संदेश फैलाया।

पग-पग पर संघर्ष किया

अन्याय की ध्वजा गिराया।


सावित्री संग क़दम मिलाया 

हर पल बाँटा उजियारा।

बनकर जन-जन की आशा

अशिक्षा के तम को मिटाया।


सदियों बाद भी नाम अमर

ज्योतिबा का दीप है प्रखर।

चलो उसी राह पर चले 

समानता के फूल फिर बुने।


ज्योतिबा का स्वप्न सच हो

हर बच्चा स्कूल में हो।

मन में करुणा व माया

सभी जीव आनंदित हों।


रचयिता
डॉ0 निशा मौर्या, 
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मीरजहांपुर,
विकास खण्ड-कौड़िहार-1,
जनपद-प्रयागराज।

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