59/2025, बाल कहानी- 08 अप्रैल
बाल कहानी - अन्न का महत्व
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मोहन अभी बारह साल का था। वह पढ़ने-लिखने में बहुत ही होशियार था। सभी अध्यापक उससे बड़ा स्नेह करते थे, क्योंकि वह सारे सवालों का जवाब तुरन्त दे देता था। मोहन की एक अच्छी आदत नहीं थी, वह खाने-पीने में बहुत ही बर्बादी करता था। घरवाले उसकी इस आदत से बहुत परेशान रहते थे। घर पर मम्मी कुछ भी बनाती तो वह हमेशा उसमें कुछ न कुछ बुराई निकला करता था। थोड़ा खाना खाकर उसे फेंक दिया करता था।
स्कूल में जो भी खाना ले जाता, उसे थोड़ा खाता, बाकी फेंक देता। मोहन की इस आदत से उसकी माँ बहुत परेशान रहती थी। मोहन को वह बहुत समझाती, पर मोहन उनकी एक बात न मानता।
एक दिन की बात है, मोहन को खाना फेंकते हुए उसके अध्यापक उसे देख लेते हैं। मोहन को समझाने के लिए वे भोजनावकाश के बाद उसकी कक्षा में जाते हैं। वे कक्षा में भोजन के महत्व के बारे में चर्चा करते हैं। उन्होंने सारे बच्चों को बताया कि, "थाली में हम जो भोजन करते हैं, वह अन्न उपजाने में बहुत ही मेहनत लगती है। अन्नदाता किसान खेतों में साल-भर मेहनत करते है, तब कहीं जाकर फसलें तैयार होती है। खेत से लेकर बाजार तक सभी अपने कार्यों को कड़ी मेहनत से करते हैं। उसके बाद घर पर हमारी माताएँ भोजन बनाती हैं।
इसलिए हमें अपने थाली में बिल्कुल भी अन्न बर्बाद नहीं करना चाहिए। ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनको भरपेट भोजन नहीं मिलता है और वे भूखे ही सो जाते हैं। हमें उतना ही भोजन लेना चाहिए, जितनी कि हमें जरूरत हो।"
उनकी बातें सुनकर मोहन को अपनी गलती का एहसास होता है। घर आकर अपनी माँ से अपनी गलती की क्षमा माँगता है और अपनी माँ से वादा करता है कि, "आज के बाद वह खाना खाने में कभी भी बहाने नहीं करेगा। जो भी बनेगा, वह सब खायेगा और अपने थाली में बचा भोजन फेंककर बर्बाद नहीं करेगा।
#संस्कार_सन्देश -
हमें अन्न की बर्बादी नहीं करनी चाहिए और थाली में उतना ही भोजन लेना चाहिए, जितनी हमें जरूरत हो।
कहानीकार-
#मृदुला_वर्मा (स०अ०)
प्रा० वि० अमरौधा प्रथम
अमरौधा (कानपुर देहात)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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