60/2025, बाल कहानी- 09 अप्रैल
बाल कहानी - कार्य एक भाव अनेक
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"सर! आपने हमें बसन्त ऋतु, नव दुर्गाओं, राम-जन्म की अद्भुत कथाएँ सुनायीं। प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों को कथा के माध्यम से समझाया। आपको विभिन्न पुराणों और रामायणों का भी भली-भाँति ज्ञान है। आज हमें कोई ऐसी कथा सुनाईये, जिससे एक ही कथा में विभिन्न लोगों की अलग-अलग भावनाओं का ज्ञान हो?"
अतुल की वाक्य-शैली और कहने के ढ़ंग से विमल सर बहुत प्रभावित हुए। वह बोले, "अतुल! तुम बोलने में प्रवीण और चतुर हो। तुम्हारी संवाद-शैली अन्य बच्चों के लिए अनुकरणीय है। आज मैं तुम्हें और सभी बच्चों को प्रार्थना-स्थल पर 'कार्य एक, भाव अनेक' कहानी सुनाता हूँ। सभी ध्यान से सुनो-
एक बार मैं खजुराहो मन्दिरों का दर्शन करने गया। वहाँ स्नान कर मैंने मतंगेश्वर को जल चढ़ाया। धूप-दीप दिखाकर प्रसाद और नारियल चढ़ाया और प्रसाद और गरी वहीं कन्याओं में बाँटकर, उन्हें पाँच-पाँच रुपये देकर उनका आशीर्वाद लिया। मैं मन्दिरों का दर्शन करने के लिए आगे बढ़ गया। तभी देखा कि एक स्थान पर निर्माण कार्य हो रहा है। मैंने वहाँ से निकलने का कोशिश की और आगे बढ़ने लगा। कुछ लोग सिर पर तसले में गारा रखकर लिए जा रहे थे। मजदूर बहुत थे, इसलिए मैं पूछ बैठा कि, भाई! यहाँ तो बहुत से मजदूर हैं, क्या बन रहा है?"
"दिखाई नहीं देता, निर्माण कार्य चल रहा है।" उसने गरजकर जबाब दिया। मैं चौंक गया और आगे कुछ दूर पर मैंने फिर एक व्यक्ति से पूछा कि, "भाई! यहाँ क्या बन रहा है?"
"मकान बन रहा है।" वह बोला और आगे बढ़ गया।
कुछ दूर जाकर मैंने उत्सुकतावश फिर पूछा, भाई! क्या कर रहे हो?"
उसने कहा, "मजदूरी कर रहा हूँ।"
मैं मन में हँसा। फिर थोड़ी दूर जाकर एक ऐसे व्यक्ति को देखा, जो वही मजदूरी कर रहा था, जो ये सभी लोग कर रहे थे। उसके चेहरे पर अपूर्व आभा-मण्डल था। वह भक्ति-गीत गाते हुए आगे बढ़ रहा था। उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह मजदूरी कर रहा है। मैं जल्दी-जल्दी उसके पास गया।
और उसे रोककर हाथ जोड़कर बोला, "जय श्रीकृष्ण!"
वह ठिठका और बोला, "जय श्रीकृष्ण! कहिए महानुभाव! मैं आपकी क्या सेवा करुँ?" मैंने उसे नीचे से ऊपर तक देखा और कहा, "कुछ नहीं, बस! एक बात पूछनी थी, कोई सही जबाब ही नहीं दे रहा है।"
उसने कहा, "जो भी पूछना है, जल्दी पूछिए, मेरे प्रभु के कार्य में बिलम्ब हो रहा है.."
"प्रभु के कार्य में बिलम्ब? मैं समझा नहीं..।
"हाँ! यहाँ प्रभु का मन्दिर बन रहा है। कुछ ही दिनों में प्रभु श्रीकृष्ण, राधा रानी सहित यहाँ विराजने वाले हैं। अब आप पूछिए..।" मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया था। मैंने कहा, "कुछ नहीं, मुझे जबाब मिल गया है। जय श्रीराधे-कृष्णा!" वह बहुत खुश हुआ और राधा-कृष्णा, राधा-कृष्णा गाता हुआ वहाँ से आगे बढ़ गया। मैं भी धीरे-धीरे मन्दिर की ओर कदम बढ़ा रहा था और सोच रहा था कि, "एक कार्य, चार व्यक्ति और चारों के भाव कितने अलग-अलग है? किसी की दृष्टि में निर्माण कार्य था, किसी की दृष्टि में मकान बन रहा था, किसी की दृष्टि में मजदूरी थी, पैसा कमाना था और किसी की दृष्टि में भगवान का मन्दिर बनाया जा रहा था और यह हँसता-नाचता-गाता अपने को कितना कृतकृत्य समझ रहा था कि उसे प्रभु ने अपने कार्य के लिए चुना है। वह कर्ता-भाव से रहित था, जिसका श्रीकृष्ण ने गीता में उल्लेख किया है।"
#संस्कार_सन्देश -
सोच-समझ और भाव सभी में अलग-अलग होते हैं। इसी से तो मानव एक होते हुए भी भिन्न है।
कहानीकार-
#जुगल_किशोर_त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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