76/2025, बाल कहानी - 01 मई
बाल कहानी- राजा पुरन्जय (भाग- 1)
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एक बार राजा पुरन्जय अपने मित्र अविज्ञात के साथ जंगल में शिकार खेलने गया। वहाँ दोनों मित्र एक-दूसरे से बिछुड़ गये। मित्र अविज्ञात ने राजा को बहुत ढूँढ़ा किन्तु राजा पुरन्जय नहीं मिला। अविज्ञात वापिस घर लौट आया।
इधर राजा पुरन्जय पानी की खोज में जंगल के भीतर बहुत दूर तक चला गया। तभी उसे एक सरोवर दिखाई दिया। वहीं एक ओर एक राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ जल-क्रीड़ा कर रही थीं। राजा ने जब उनकी हँसी-खुशी की आवाजें सुनी तो वह पानी पीकर उस ओर गया। किसी अपरिचित को पास आते देखकर राजकुमारी सहेलियों सहित सरोवर से बाहर आ गयी। राजा ने अपना परिचय दिया। राजा के द्वारा परिचय पूछने पर उसने बताया कि, "मुझे अपने बारे में केवल इतना ही मालूम है कि मेरा नाम रुपसी है। मैं यहीं कुछ दूर स्थित एक विशाल महल में रहती हूँ, अनेक सेवक और दास-दासियाँ मेरी सुरक्षा और सेवा करते हैं। सेनापति मेरे राज्य की रक्षा करता है। एक पाँच फन वाला सर्प महल के द्वार की सदैव रक्षा करता है। मेरा राज्य राजा से हीन है।"
"लेकिन यहाँ राजा क्यों नहीं है?" राजा के पूछने पर राजकुमारी रुपसी बोली, "राजन्! यहाँ मैं ही इस राज्य की मालकिन और शासक हूँ। जो व्यक्ति मुझसे शादी करेगा, वही इस राज्य को भोगेगा।"
"मैं भी अभी कुँवारा हूँ।" राजा की बात समझते राजकुमारी को देर न लगी। वह बोली, "ठीक है राजन्! मुझे आपका प्रस्ताव स्वीकार है।"
दोनों राजमहल आये। इस राजमहल में दस दरवाजे थे, जिन पर विभिन्न देवी-देवताओं के सुन्दर और आकर्षक चित्र बने हुए थे। वहाँ शुभ मुहूर्त में दोनों का विवाह-उत्सव हुआ। उस राज्य से अलग-अलग राज्यों, देशों और दिशाओं में जाने के लिए अलग-अलग द्वार, रथ, सेनापति और सेना थी। राजा पुरन्जय ने वहाँ का राजकार्य सँभाला और प्रसन्न होकर वहीं रहने लगा।
#संस्कार_सन्देश -
हम कौन हैं, कहाँ से आये हैं? हमें घर-परिवार और गाँव-नगर को नहीं भूलना चाहिए।
कहानीकार-
#जुगल_किशोर_त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद #दैनिक_नैतिक_प्रभात
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