57/2025, बाल कहानी - 05 अप्रैल
बाल कहानी - नवरात्रि और नवदुर्गा
-------------------
आज जैसे मैं 'स्कूल चलो अभियान' के तहत गाँव भ्रमण कर स्कूल में लौटा तो सारे बच्चे दौड़कर मुझे घेरकर खड़े हो गये और सरजी.. सरजी..कहने लगे। मैने पूछा, "बच्चों! बताओ, क्या बात है?"
सभी बच्चे एक साथ उच्च स्वर में बोले, "सरजी! आज आप हम सबको कक्षा में नवरात्र एवं नवदुर्गा की कथा सुनाईये!"
"अच्छा, ठीक है। चलो कक्षा में..मैं वहीं आता हूँ।" सभी बच्चे खुश होकर कक्षा में जाकर बैठ गये और मेरे आने की प्रतीक्षा करते लगे।
थोड़ी देर बाद जैसे ही मैं कक्षा में पहुँचा। सभी बच्चे उठकर खड़े हो गये। मैंने उन्हें बैठने का इशारा किया। सब 'धन्यवाद सर' कहकर अपनी-अपनी जगह पर बैठ गये।
मैं भी अपनी कुर्सी पर बैठ गया और उनको नवरात्र और नवदुर्गा के बारे में बताने लगा। मैंने कहा, "बच्चों! वर्ष में नवरात्रि चार बार आती हैं..."
तभी एक बच्चा बोला, "सर! आप गलत बोल रहे हैं। नवरात्रि वर्ष में दो बार ही आती हैं। क्वांर और चैत्र माह में..।"
"धन्यवाद! जाओ!" मेरे वह कहने पर बच्चा बैठ गया। मैंने बताया कि, तुम्हारी बात भी सच है। मुझे भी बड़े होने तक यही लगा कि वर्ष में दो ही नवरात्रि हैं, क्योंकि यही प्रत्यक्ष भी हैं। सारा संसार इनको जानता है। लेकिन ये भी सच है कि इनके अतिरिक्त दो नवरात्रि और भी हैं। एक माघ माह की और दूसरी आषाढ़ माह की। ये सब दोनों अप्रत्यक्ष हैं।"
"अप्रत्यक्ष..?" सभी बच्चे एक स्वर में बोले!
हाँ! वर्ष में चार नवरात्रि आती हैं, जिन्हें हम नवदुर्गा कहते हैं। माघ, चैत्र, आषाढ़ और क्वांर यानि आश्विन माह की नवरात्रि। चारों माह में नवदुर्गाओं का नौ दिनों का एक ही स्वरूप होता है। नवदुर्गा के नव रुप हैं। सभी रुप अलग-अलग होते हैं। उनकी वेषभूषा, आकार और अस्त्र-शस्त्रों में भी कहीं न कहीं अन्तर दिखाई देता है। अब मैं तुम सबको नवदुर्गाओं के नौ नाम बताता हूँ, सुनो- पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चन्द्रघन्टा, चौथी कूष्माण्डा, पाँचवी स्कन्दमाता, छठवी कात्यायनी, सातवी कालरात्रि, आठवी महागौरी और नवमी दुर्गा सिद्धिदात्री है। इन सभी की क्रमश: पहले दिन से लेकर एक-एक की नौ दिन तक अलग-अलग साधना की जाती है। नौ दिन तक रोज सभी बच्चे, नर-नारी सुबह माँ के मन्दिर पर जल चढ़ाने जाते हैं और शाम को दीपक रखते हैं और प्रसाद, नारियल चढ़ाते हैं। तो बच्चों! बताओ, कैसी लगी ये जानकारियाँ..?"
"बहुत अच्छी और उपयोगी..।" सभी बच्चे बोले।
"ठीक है, अभी इतनी जानकारी ही बहुत है। जब तुम बारह-तेरह वर्ष के हो जाओ, तब अन्य गूढ़ जानकारी जान सकते हो। वे मैं फिर कभी बताऊँगा।"
"धन्यवाद सर!" सभी बच्चों ने मुझे 'धन्यवाद' कहा और मेरे कहने पर अपनी-अपनी कक्षाओं में चले गये। मैं आज बहुत खुश था।
#संस्कार_सन्देश -
हमें अपने यहाँ की धार्मिक परम्पराओं की जानकारी होनी चाहिए।
कहानीकार-
#जुगल_किशोर_त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
Comments
Post a Comment