56/2025, बाल कहानी- 04 अप्रैल


बाल कहानी - सरकारी स्कूल
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मोहन और उसकी पत्नी शहर में रहते थे। उसके एक बेटी थी, राधिका और एक बेटा था, सोनू।
दोनों पास के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाते थे। राधिका पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार थी। मोहन के माता-पिता गाँव में खेती बाड़ी करते थे। 
मोहन शहर में ही एक छोटी-सी राशन की दुकान खोले हुए था और अपने परिवार का पालन पोषण करता था। मोहन की पत्नी मंजू घर के कार्य में दक्ष थी। 
सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन अचानक से मंजू की तबीयत खराब हो जाती है और वह बहुत बीमार हो जाती है। घर पर रखा हुआ सारा पैसा धीरे-धीरे दवाई मे खर्च होने लगता है। दोनों बच्चों की पढ़ाई के लिए वह फीस कैसे भरे? यह सोच-सोच कर वह बहुत परेशान हो जाता है।
फिर वह अपने दोनों बच्चों को गाँव में अपने माता-पिता के पास भेज देता है। गाँव में राधिका की दादी राजू को तो बहुत प्यार करती थी पर राधिका को घर के काम-काज में लगाए रहती थी।
वह बेटियों के पढ़ने के पक्ष में नहीं थी। उनका कहना था कि, "बेटी को घर सम्भालना है। अधिक पढ़ाई-लिखाई उनके लिए जरूरी नहीं है।" राधिका की दादी और दादा राजू को प्राइवेट स्कूल में और राधिका को सरकारी स्कूल में प्रवेश दिला देते हैं। दादी के घुटने में दर्द रहता था इसलिए घर का सारा काम राधिका ही करती थी।
राधिका घर के काम के साथ-साथ पढ़ाई भी करती रहती थी। जब राधिका पढ़ाई करती है दादी उसे डाँटकर करके कामों में लगा देती थी। राधिका फिर भी अपनी पढ़ाई जारी रखती थी।
राधिका के आठवीं के इम्तिहान थे। और वह अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती है। वार्षिक सम्मान समारोह में राधिका के दादा-दादी को बुलाया जाता है और उन्हें सम्मानित किया जाता है।
सभी गाँव वाले ताली बजाते हैं।
आज राधिका के वजह से दादा-दादी को जो सम्मान प्राप्त हुआ था, शायद ही इस बारे में उन्होंने कभी सोचा था। उधर राजू को कक्षोन्नति मिलती है।
अब दादी की सोच में परिवर्तन हो जाता है। दादी कहती है कि, "सरकारी स्कूलों में भी बेहतर पढ़ाई होती है। बस! जरूरत है तो मन लगाकर पढ़ने की। हमें अपने बच्चों को शिक्षा के समान अवसर देना चाहिए।" सारे गाँव वाले उनकी इस बात का समर्थन करते हैं। और कहते हैं कि हम भी अपने बच्चों को नियमित सरकारी विद्यालय भेजेंगे।

#संस्कार_सन्देश -
हमें अपने बेटा बेटी दोनों को शिक्षा के समान अवसर देना चाहिए। सरकारी स्कूलों में भी बेहतर पढ़ाई होती है, इसे सभी को स्वीकार करना चाहिए।

कहानीकार-
#मृदुला_वर्मा (स०अ०)
प्रा० वि० अमरौधा प्रथम
अमरौधा (कानपुर देहात)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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