110/2024, बाल कहानी -05 जुलाई


बाल कहानी- नशा मुक्ति
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रामपुर नामक गाँव में सेवाराम नाम का एक व्यक्ति रहता था। सेवाराम का एक बड़ा भाई मेवाराम था। दोनों परिवार एक साथ खुशी-खुशी से रहते थे। दोनों भाइयों के एक-एक पुत्र थे, उनके नकुल, सहदेव नाम थे।
दोनों भाई उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहर से बाहर चले गये थे। दोनों ही खूब मेहनत करके पढ़ाई कर रहे थे। 
एक दिन नकुल जो बड़े भाई मेवाराम का बेटा था, अपने दोस्तों के कहने पर बाहर घूमने के लिए चला जाता है, लेकिन देखता है कि वहाँ पर सब लोग नशे की चीजें ले रहे होते हैं। ये लोग नकुल को भी नशा करने के लिए दबाव बनाते हैं, लेकिन नकुल ने नशा लेने से साफ मना का दिया।
तभी एक मित्र को शरारत सुझती है और नकुल को धोखे से नशे की चीज खिला देता है। नकुल नशे की हालत में कॉलेज आ जाता है। जैसे ही कॉलेज की प्रधानाध्यापक को पता चलता है तो वह उसे पास बुलाकर सारी जानकारी लेते हैं और जिन बच्चों ने खेल-खेल में ऐसा किया था, सभी को उनके माता-पिता के साथ बुलाकर सारी शिकायत करते हैं। सभी ने उन व्यक्तियों के नाम बताये, जिन्होंने उन्हें नशे की आदत डलवाई थी। पुलिस के साथ मिलकर उन सभी व्यक्तियों को जेल में डाल दिया जाता है।

संस्कार सन्देश-
किसी ने कहा है कि "नशा नास की नसेनी है।"  

लेखिका-
अंजनी अग्रवाल (स०अ०)
उच्च प्रा० वि० सेमरुआ सरसौल (कानपुर नगर)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝 टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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