सैनिक की अभिलाषा

मेरे परवरदिगार तू बस, इतना दीदार करा देना।

दौलत ना शौहरत देना बस, मोहब्बत वतन से करा देना।।


मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों का, न गान सुनाने आया हूँ।

चर्च  में  बजते  घंटों  की, न तान  सुनाने  आया  हूँ।।

घायल  घाटी  की पीड़ा का  हाल सुनाने आया  हूँ।

आजादी  के  टूटे - फूटे  सपने  लेकर  आया  हूँ।।

जो बुरी नजर से देखे घाटी, उसकी आँखें निकाल देना◆◆

दौलत न ..................................................


ए मालिक मेरे प्यारे वतन में, न कोई भूखा नंगा हो।

शान्तिप्रिय  हों   सभी  जन, न   कोई  दंगा   हो।।

शम्मे वतन की लौ पर जब कोई कुर्बान पतंगा हो।

होठों पर भारत माँ की जय, हाथों में लहराता तिरंगा हो।।

करे वतन संग जो गद्दारी, उनका सोता जमीर जगा देना◆◆

दौलत न ..............................


उन बर्फीली सर्द हवाओं में, फौलादों सा खड़ा रहूँ।

मिसाइल हों चाहे  तोपें हों, सीना ताने  अड़ा रहूँ।।

आखिरी साँस तक तिरंगे को, सरहद पर लहराता रहूँ।

जब तक सांस रहे तन में, जय-जयकार तेरी करता रहूँ।।

मेरे खून का एक-एक कतरा तू, वतन के लिए बहा देना।।

दौलत न ................................


रचयिता

अजय विक्रम सिंह, 
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मरहैया,
विकास क्षेत्र-जैथरा,
जनपद-एटा।

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