128/2024, बाल कहानी-27 जुलाई


बाल कहानी- राजा का दुःख
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हरीमन नाम का एक घना जंगल था। वहाँ अनेक प्रकार के जानवर पशु-पक्षी आदि रहते थे। मनबढ़ नाम का शेर उसकी पत्नी तथा उसका परिवार मगन होकर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। जंगल में उसी की हूकूमत चलती थी। उसका मन जिसके ऊपर हमला करने को करता, उस पर हमला करता और उसे अपना निवाला बनाता।
जंगल के सारे जानवर डरे-सहमे रहते। हर दिन कोई न कोई उनका निवाला बन जाता। जो बचता, वह इस शोक तथा भय में डूब जाता कि कल न जाने किसकी बारी आये। धीरे-धीरे जंगल के सारे जानवरों को मनबढ़ तथा उसके परिवार ने खा डाला। अब जंगल में शेर और उसका परिवार अकेला पड़ गया। अच्छा आहार न पाने के कारण धीरे-धीरे उनका दहाड़ना कमजोर पड़ गया तथा आहार-विहार दोनों में कमी होने के कारण वे कमज़ोर होते गये।
एक दिन इन्सानों का एक समूह जंगल में बन्द गाड़ी में आया और कुछ शेरों को मारकर उठा ले गया। मनबढ़ और उसकी पत्नी बहुत दुःखी हुए और सोचने लगे कि-, "काश! मेरे अन्दर दया की भावना पहले से आ गयी होती, तो न मैं किसी को मारता और न ही अकेले रहने का गम झेलता तथा न ही कोई हमें नुकसान पहुँचा पाता, लेकिन अब पछताने से क्या होता है। अब तो हमें अकेले रहने का दंश झेलना ही पड़ेगा।"

संस्कार सन्देश-
स्वार्थ में अपनों को नुकसान न पहुँचायें। अकेले नहीं बल्कि समूह में रहें। सोच-समझकर कार्य करें।

लेखिका-
सरिता तिवारी (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय कन्दैला मसौधा (अयोध्या)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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