121/2024, बाल कहानी - 19 जुलाई


बाल कहानी- लगाव
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घना जंगल था। बरसात के मौसम में कई दिनों से लगातार तेज बारिश हो रही थी, इसलिए बाढ़ की स्थिति आ गयी थी। कौआ डाल पर बैठा था। अचानक तेज हवा चली, डाल टूट गयी। कौआ जमीन पर गिर पड़ा। पानी का बहाव इतना तेज़ था कि वह बहता चला गया।
कौआ डर के बारे बेहोश हो गया। जब उसकी आँख खुली तो उसने देखा कि उसको कोई बहुत प्यार से गोद में लिए हुए था।
कौआ की आँख खुलते ही एक छोटा सा बच्चा जिसका नाम सोनू था, वह बहुत खुश हुआ और बोला-, "तुम डरो मत! तुम मुझे मेरे घर के बाहर नाली में पड़े मिले। तुम पर बहुत गन्दगी लगी थी। मैंने गन्दगी साफ की और अपने घर लाकर देख-भाल की।
तुम यहीं बैठो, अभी जाना नहीं! मैं तुम्हारे लिए भोजन लाता हूँ।" इतना कहकर सोनू ने कौआ को अपनी गोद से उठाकर फर्श पर रख दिया और भोजन लेने के लिए रसोईघर में जा पहुँचा।
माँ से बोला-, "माँ! मुझे थोड़ा सा भोजन चाहिए। कौआ को खिलाना है।
"कौआ! कौन सा कौआ, कहाँ है? चलो, मुझे भी दिखाओ।" माँ ने पूछा।
"माँ! मुझे कौआ नाली में मिला था। मैने उसे साफ-सुथरा करके
कमरे में फर्श पर बैठा दिया है। चलिए, आपको दिखाऊँ। ये देखिए आप...।"
"मुझे तो नही दिख रहा।" 
"अरे! कहाँ चला गया? अभी यहीं तो था। माँ! मैं सच कह रहा हूँ।" 
"कोई बात नहीं बेटा! मुझे यकीन है तुम पर।" 
सोनू ने बड़े दुःख से आँखों में आँसू भर के कहा-, " माँ! मैंने कौआ से कहा था, यही रहना। मैं तुम्हारे लिए भोजन लाता हूँ। फिर कौआ क्यूँ चला गया? मुझे उससे लगाव हो गया था। उसे नहीं जाना चाहिए था।" इतना कहकर सोनू रोने लगा।
माँ ने सोनू को गोद में लेकर प्यार से समझाया-, "बेटा! वह अपने घर चला गया होगा। अपनी माँ के पास। जैसे तुम्हें मेरे पास रहना अच्छा लगता है, वैसे उसे भी अपने घर पर अपने परिवार के साथ रहना पसन्द है।" सोनू को माँ की बात समझ में आ गयी। वस इस बात से खुश हो गया कि कौआ अपने घर पहुँच गया।

संस्कार सन्देश- 
लगाव ही पीड़ा है, पर हमें अपनी खुशी के साथ-साथ सामने वाले की खुशी का भी खयाल रखना चाहिए।

लेखिका-
शमा परवीन
बहराइच, उत्तर प्रदेश

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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