118/2024, बाल कहानी - 15 जुलाई
बाल कहानी- गुल्लक
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एक गाँव में हरिराम नाम का किसान रहता था। वह अपने परिवार के साथ खेती-वाड़ी का काम करता और मजदूरी मिल जाती तो कर लेता। जैसे-तैसे गुजारा चल ही जाता। उसके दो बच्चे थे, वे भी बड़े होकर विद्यालय जाने लगे थे। उसकी पत्नी गृहणी थी साथ में अपने पति का हर काम हाथ बँटाती थी।
हरिराम जो कुछ कमाकर लाता, अपनी पत्नी को सौंप देता था। पत्नी उसी से घर का खर्च चलाती और कुछ पैसे पति को बिना बताए गुल्लक में डाल देती थी। ऐसे ही हँसी-खुशी से परिवार चल रहा था। बच्चे भी समझदार थे। दोनों अच्छे से मन लगाकर पढ़ते थे।
कुछ साल बाद बरसात के मौसम में गाँव में कोई ऐसी बीमारी फैली, जिससे हरिराम के दोनों बच्चे बहुत बीमार हो गये। उसने उनका इलाज करवाया, लेकिन आराम नहीं मिला। चिकित्सक ने सलाह दी कि बच्चों को शहर में ले जाकर दिखा लो।
अब हरिराम की चिन्ता गहराने लगी। उसे पता था कि चौमासा चल रहा है। काम-धन्धा सब बन्द है। पैसे कहाँ से आयेंगे? सोच-विचार करते हुए वह दुःखी मन से घर पहुँचा।
हरिराम ने पत्नी को जाकर सारी बात सुनाई पत्नी ने कहा-, "आप तो व्यर्थ चिन्ता करते हैं। ईश्वर सब ठीक करेगा।"
पत्नी घर के अन्दर जाकर छुपी हुई गुल्लक को निकाल लायी। उसे तोड़ा गया तो उसमें तीन हजार से ज्यादा पैसे निकले, जो बच्चों की बीमारी की दवा के लिए पर्याप्त थे। हरिराम और उसकी पत्नी दोनों बच्चों को शहर ले गये। उनका अच्छे से इलाज हुआ और परिवार की सारी चिन्ता दूर हो गयी।
संस्कार सन्देश-
हमारे जीवन धन संचय बहुत जरूरी है, जो हमें जरूरत पड़ने पर आर्थिक संकट से निजात दिलाता है।
लेखक-
धर्मेंद्र शर्मा (स०अ०)
कन्या प्रा० वि० टोडी-फतेहपुर
ब्लॉक- गुरसरांय (झाँसी)
कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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