132/2024, बाल कहानी-01 अगस्त


बाल कहानी- देवपुरुष
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एक शहर में एक व्यापारी रहता था। वह धन-धान्य से परिपूर्ण एक समृद्ध और सुशील व्यक्ति था। सभी उसकी बड़ी प्रसंशा करते थे। वह समय आने पर सभी की मदद करता था। उसकी प्रसंशा सुनकर अन्य सभी व्यापारी उससे बहुत जलते थे।
एक दिन सभी व्यापारियों ने उसे एक झूठे केस में फँसा दिया और झूठे गवाहों के दम पर उसे आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी। जिन व्यक्तियों ने उसकी झूठी गवाही दी थी, उन्हें अन्य व्यापारियों ने धन का लालच दिया था। जब व्यापारी जेल चला गया, तब उन्होंने उन लोगों को धन नहीं दिया। 
समय गुजरता गया। एक दिन उस व्यापारी का वकील अपने व्यापारी के गाँव में गया। वहाँ उसे अचानक वही लोग मिले। वकील ने जब उनसे पूछताछ की तो पता चला कि व्यापारी निर्दोष है। इन लोगों ने झूठी गवाही देकर व्यापारी को जेल में भिजवा दिया। उसने सभी को समझाया कि-, "मेरे व्यापारी ने समय-समय पर तुम लोगों की संकट में भारी मदद की है। तुम लोगों ने कुछ रुपयों के लालच में उसे जेल भिजवा दिया। वह व्यापारी कितना ईमानदार और सुशील व्यक्ति था। ऐसे व्यक्ति के साथ जो तुम लोगों ने धोखा किया है, उसके लिए ईश्वर भी तुम्हें माफ नहीं करेगा। तुम्हारे बच्चे कभी भी सुखी नहीं रहेंगे। वे सदा अभावों की जिन्दगी जीकर तिरस्कृत रहेंगे। तुम्हें पता है कि सभी जगह लोग तुम्हारी निन्दा करते हैं और तुम लोगों को गाली देते हैं। तुम लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए था।"
उस वकील की बात सुनकर उन लोगों ने कहा कि-, "हम लोग बहुत दुःखी और परेशान हैं। गाँव में सभी मेरा अपमान करते हैं। विरोधी पक्ष ने हमें रुपए भी नहीं दिए।" उनकी यह बात सुनकर वकील बोला-, "तुम लोग चिन्ता मत करो। तुम लोग अदालत में कह देना कि विरोधियों ने हमारे बच्चों का अपहरण किया था, जिसके कारण हमें ऐसा करना पड़ा। इससे तुम लोगों को भी कोई सजा नहीं होगी और व्यापारी दोषमुक्त होकर जेल से छूट जायेगा। जिन लोगों ने उसे झूठ केस में फँसाया है, उन लोगों को ही कठोर सजा मिलेगी।" सभी लोगों ने वकील की बात सुनकर 'हाँ' कह दी।
समय आने पर दोषी व्यापारी के केस की फाइल पुनः खोली गयी और पुनः केस चला। वकील ने जैसा कहा था, उन लोगों ने वैसे ही जज साहब को बताया। अन्त में व्यापारी निर्दोष साबित हुआ और जेल से रिहा हुआ। उन लोगों को भी कोई सजा नहीं हुई। जिन लोगों ने व्यापारी को फँसाया था, उन सभी को जज साहब ने बड़ा जुर्माना लगाकर आजीवन कारावास की सजा सुनायी।
व्यापारी जेल से बाहर आकर बहुत खुश हुआ और उन लोगों से बोला-, "मुझे खुशी है कि तुम लोगों ने मेरे खिलाफ गवाही दी, अन्यथा मुझे अपने विरोधियों का कैसे पता चलता और उन्हें सजा कैसे मिलती? अब मैं स्वतन्त्र होकर अपना व्यापार नये ढंग से शुरू कर सकूँगा। मैं अपने सभी आस-पास के गाँवों में फैक्ट्री लगवाऊँगा, जिससे सभी लोगों को रोजगार मिलेगा और उन्हें काम-काज की तलाश में बाहर नहीं जाना पड़ेगा और न ही जरुरत पड़ने पर किसी से रुपये माँगने पड़ेंगे।"
व्यापारी की यह उदारतापूर्ण बातें सुनकर वे लोग उसके चरणों में गिर पड़े और बोले-, "इतना कुछ होने के बाद भी आपको दुःख नहीं हुआ। सचमुच! आप देवपुरुष हैं।" तभी वकील बोला-,"देख लिया, यही हमारे व्यापारी की विनम्रता और उदारता है। ऐसा व्यक्ति कभी कहीं ढूँढ़े नहीं मिलेगा। मुझे गर्व है कि मैं इनका वकील हूँ।" सभी व्यापारी को नम आँखों से देख रहे थे और व्यापारी उनके समक्ष हाथ जोड़े खड़ा था।

संस्कार सन्देश-
हमें जीवन में कभी भी किसी को कभी भी धोखा नहीं देना चाहिए। निर्दोष व्यक्ति का एक दिन सभी को पता चल जाता है।

लेखक-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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