123/2024, बाल कहानी - 22 जुलाई


बाल कहानी- गुरु पूर्णिमा
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आज सभी बच्चे और शिक्षक अवकाश के वावजूद भी विद्यालय में उपस्थित थे। विद्यालय में रोज की तरह प्रार्थना और सरस्वती वन्दना हुई फिर राष्ट्रगान। राष्ट्रगान के बाद शारीरिक व्यायाम की गतिविधियों के बाद सभी बच्चों को प्रधानाचार्य महोदया ने बैठने को कहा और उन्हें बताया कि-, "जैसा कि कल आप सभी को अवगत कराया गया था कि आज गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व, त्योहार और महोत्सव है।" तभी एक बच्चे ने पूछा कि-, "मैंम! यह पर्व क्यों मनाया जाता है और इसके मनाने के पीछे क्या कारण रहा है?" मैंम बोली कि-, "आपको सभी प्रश्नों के उत्तर दिए जायेंगे। असल में यह त्योहार गुरु वेदव्यास के जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है। इस दिन वेदों के संकलनकर्ता, पुराणों और महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी का जन्मदिन गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। तो आइए, हम सभी सर्वप्रथम वेदव्यास जी के चित्र पर माल्यार्पण करेंगे और उन्हें नमन करके पुष्प अर्पित करेंगे और उनसे प्रार्थना करेंगे कि हे गुरुदेव! आप हमारे जीवन को प्रकाशित कर ज्ञानमय बनायें। हमारे जीवन में उत्तम संस्कारों का उदय हो, हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हों, जो हमें नयी दिशा में ले जायें, जहाँ अन्धकार की छाया मात्र तक न हो।" इतना कहकर वहाँ उपस्थित ग्राम प्रधान, प्रधानाचार्य महोदया, सभी शिक्षकों और बच्चों ने श्री वेदव्यासजी को नमन करते हुए पुष्प अर्पित किए और उनसे प्रार्थना की।
तत्पश्चात प्रधानाचार्य महोदया ने सभी बच्चों को बताया कि-, "बच्चों! अब आपके जो भी प्रश्न होंगे, उनका क्रम से उत्तर दिया जायेगा।" एक बच्ची ने पूछा कि-, "मैंम! इस दिन तो सभी अपने-अपने गुरुओं की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं?"
प्रधानाचार्य महोदया बोली-, "हाँ! बिल्कुल सही। इस दिन गुरु की ही पूजा होती है। इस दिन लोग गुरु भी बनाते हैं। उस समय वेदव्यास सबसे सम्मानित और श्रेष्ठ गुरु थे। इसलिए उन्हीं की पूजा होती थी। ऐसा नहीं है कि उस समय और कोई श्रेष्ठ गुरु नहीं थे। उस समय ऋषि-मुनियों और विद्वानों तथा गुरुओं की कमी नहीं थी। सभी ज्ञानी और श्रेष्ठतम थे। पर उस समय वेदव्यास जी को अवतारी माना जाता था और जो कार्य उन्होंने किया, वह कोई नहीं कर पाया। पुराणों और महाभारत तथा वेदों से हमें उस समय के इतिहास, परम्पराओं, आचार-विचार, रहन-सहन और क्रियाकलापों तथा जीवन शैलियों का पता चलता है। उस समय धर्म अपने उच्चतम शिखर पर था। विज्ञान का पूर्ण विकास हो चुका था, लेकिन दुर्भाग्य कि महाभारत काल में सभी ज्ञान और ज्ञानी, धर्म और विज्ञान नष्ट हो गया। जो बचा, वह विदेशी लूटकर ले गये। फिर भी आज हमारा भारत उसी ओर आधुनिकता के साथ नये रुप में, नये ढंग से लौटता नजर आ रहा है।"
तभी एक बच्चे ने पूछा कि-, "मैंम! क्या इस दिन किसी और की भी पूजा होती है?"
"हाँ! वेदव्यास जी के साथ-साथ इस दिन श्रीहरि विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा होती है। इस दिन देवगुरु बृहस्पति जी की भी पूजा सभी करते हैं। इसके बाद सरस्वती वन्दना और पूजा-अर्चना होती है। वैसे इस दिन हमें अपने माता-पिता और, गणेश, गौरी, शिव की पूजा सर्वप्रथम करनी चाहिए। माता-पिता हमारे ईश्वर और प्रथम गुरु हैं। वही हमें इस लायक करते हैं, ऐसी जगह पढ़ाते हैं ताकि हम सदैव जीवन में सफल हो सकें।"
यह सुनकर ग्राम प्रधान सहित सभी उपस्थित शिक्षकों और उपस्थित ग्रामीणों ने तालियाँ बजायीं तथा सभी की सराहना की। इसके बाद ग्राम प्रधान और सभी शिक्षकों ने गुरु पूर्णिमा पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। अन्त में सभी बच्चों और उपस्थित ग्रामीणों तथा शिक्षकों को मिष्ठान वितरण किया गया और कार्यक्रम का समापन किया गया।

संस्कार सन्देश-
हमें गुरुओं के उपदेशों को अपने जीवन में उतारना चाहिए और उनका निरन्तर अध्ययन करना चाहिए।

लेखक-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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