117/2024, बाल कहानी - 13 जुलाई


बाल कहानी- बरसात
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"रोहन ! बेटा जल्दी करो। स्कूल के लिए देर हो रही।" माँ ने किचन से आवाज लगायी। रोहन तैयार होकर खाने की मेज पर बैठ गया। माँ ने जल्दी से नाश्ता लगाया। टिफिन और पानी की बोतल रोहन के बैग में रख दी। कहने लगी, "बाहर बारिश बड़ी जोर की है सम्भल कर जाना। हमेशा की तरह भीगना मत। तबियत खराब हो जायेगी और बस्ते में रखी सारी कॉपी किताबें भी भीग जायेंगी।" "ठीक है माँ! कह कर रोहन ने दरवाजे के पास टँगे छाते को लिया और स्कूल के लिए चल दिया। रोहन का स्कूल घर से कुछ ही दूरी पर है, इसलिए वह रोज पैदल ही स्कूल जाता है। स्कूल पहुँचकर जहाँ सबके छाते रखे हैं, रोहन ने भी अपना छाता कक्षा के बाहर कतार में रख दिया और कक्षा में बैठ गया। 
आज सारे दिन बारिश बन्द होने का नाम नहीं ले रही थी। बरसात का मौसम जो है। जब छुट्टी हुई तो सभी बच्चों ने अपने-अपने छाते उठाये लेकिन रोहन ने अमन का छाता उठा लिया। 
"अरे, रोहन! तू क्यों रोज-रोज मेरा छाता ले जाता है? तू हमेशा मेरे छाते की वजह से भीग जाता है। देख न कितने बड़े छेद है इस पर। तू भीग जायेगा और तेरी मम्मी डाँटेगी तुझे।" रोहन बोला, "मेरी माँ बहुत अच्छी है। रोज मेरे भीगे कपड़े धो देती और दुसरे दिन दूसरा यूनिफार्म पहना देती। मेरे पास दो यूनिफार्म है।
तू मेरा प्रिय मित्र है। क्या मैं तेरे लिए इतना भी नही कर सकता?तू भी तो रोज मेरी मदद करता है। पढ़ाई में जो मेरी समझ में नही आता, उसे तू मुझे अच्छे से समझा देता है। होमवर्क में भी मेरी मदद करता है।" बातें करते करते अमन का घर आ गया। रोहन ने अपना छाता लिया और अपने घर के लिए चलता रहा। घर पहुँचते ही जल्दी से भींगे कपड़े बाथरूम में फेंक दिये, खाना खाया और होमवर्क करने लग गया। माँ ने रोज की तरह कपड़े धोये और सुखाने रख दिये। शाम तक रोहन को छींकें आने लगीं और रात होने तक बुखार होने लगा। माँ ने पिताजी को बताया कि-, "मना करने के बावजूद रोज स्कूल से भीग कर आता है। बच्चे है। बरसात में खेलते होंगे।" पिताजी के पूछने पर रोहन बोला,"नही पिताजी! मैं बारिश में नहीं खेलता हूँ। मेरा एक दोस्त है अमन, उसके पास मेरी तरह दो जोड़ी यूनिफार्म नहीं हैं तो मैं उसके घर तक अपना छाता उसे देता हूँ। पापा! वह पढ़ाई में बहुत होशियार है। उसके पापा के पास नया छाता लेने के लिए पैसे नहीं हैं क्योंकि वह बहुत गरीब है।इसलिए मैं रोज उसे...।"
रोहन के माता-पिता को अपने पुत्र के इस दयालुता के गुण पर मन ही मन गर्व हो रहा था। पिता दूसरे दिन रोहन को दवा लेने बाजार गये और साथ में अमन के लिए एक छाता भी ले आये। स्कूल जाते हुए कहने लगे, "लो! ये छाता तुम्हारे प्रिय मित्र के लिए। उसके प्रिय मित्र रोहन की तरफ से कहना।" रोहन ने छाता बस्ते में रखा और भागते हुए स्कूल चला गया। माता-पिता को अपने पुत्र के संस्कारों पर गर्व का अनुभव हो रहा था।

संस्कार सन्देश-
हमें सदा ही गरीब और असमर्थ लोगों की मदद करना चाहिए। यही मानवता है।

लेखिका-
सन्नू नेगी (स०अ०)
रा० क० उ० प्रा० वि० सिदोली, कर्णप्रयाग, चमोली (उत्तराखण्ड)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया 
जनपद- झाँसी (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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