हुआ शिकागो भारतमय
मेरे भाई बहनों का जब,
किया था अनुपम सम्बोधन।
जगा शिकागो में हिन्दुस्ताँ,
माँ भारती भी हुई थीं धन्य।।
है धर्म सनातन मेरा,
जो जननी है सब धर्मों की।
सन्त परम्परा मैं लाया,
आदत है सत्कर्मों की।।
सहनशीलता और स्वीकृति,
भाव यही धारण करती।
गर्वित हूँ अपने धर्म पर,
यही सनातन संस्कृति।।
स्वीकार किया सब धर्मों को,
शरण समय-समय पर दी।
दक्षिण भारत आए इजराइली,
जब टूटी उनकी धर्मस्थली।।
गुलाबी पंखुड़ियों-सी महक,
पारसी धर्म था लाया।
हर धर्म को शालीनता से,
सनातन संस्कृति ने अपनाया।।
संगम है यह धर्मों का,
जैसे समुद्र में मिले नदियाँ।
हुआ शिकागो भारतमय,
अद्भुत उद्बोधन जब दिया।।
रचयिता
ज्योति विश्वकर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,
विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,
जनपद-बाँदा।
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