प्रवासी भारतीय दिवस
घर से दूर जो, लोग परदेस गये,
गाँव, घर छोड़ा, वो विदेश गये।
जिम्मेदारियों ने, सुख-चैन छीना,
अनकहे एहसासों में संदेश गये।।
माई, बहना, चाचा, बाबा साथ छूटा,
संगी-साथियों संग, अब रहना छूटा।
पद, पैसे की, इस दुनिया में प्यारो,
अपनों से नजदीकी का रिश्ता टूटा।।
बूढ़ी आँखें, सदा तरसती रहतीं,
कब आएगा बेटा? माँ है कहती।
कितनों को तो चिता नसीब नहीं,
परदेस बसे, अनाथ लाशें कहतीं।।
अपनों से फिर उन्हें मिलायेंगे,
परदेसियों को देश बुलायेंगे।
देश के खुशबू, रचे-बसे उनमें,
प्रवासी भारतीय दिवस मनायेंगे।।
'आत्मनिर्भर भारत में योगदान' करें
अपने पुरखों का, वो भी संज्ञान करें
नव सृजन को, ज्यों पैतृक नींव मिले
17 वें प्रवासी दिवस पर योगदान करें।।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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