अंतर्नाद
मेरी कारा तोड़ो, मेरे बंधन खोलो,
मुझे अभी तो, बहुत दूर चलकर जाना है।
रिश्तों की दे शपथ, आज मत मुझको बाँधो,
जग हित सोचो, स्वार्थ नहीं बस अपना साधो।
आज खोल लेने दो, मुझको तंद्रित आँखें,
जगना ही पर्याप्त नहीं, विश्व जगाना है।।
मेरी कारा.....
कभी पहल तो करनी होगी, एक किसी को,
बोनी होगी विश्वासों की फसल किसी को।
मुझे ढूँढने हैं, धरती के नूतन कोने,
मुझे नए आकाशों का पता लगाना है।।
मेरी कारा.....
चूड़ी का है मान मुझे, पर प्यारी तलवार भी,
पार लगाती नौका हूँ, नदिया की धार भी।
पथ को चुनने की क्षमता है, अधिकार नहीं,
गिरने दो मुझको, तो गिर कर उठ जाना है।।
मेरी कारा........
बनूँ उजाला जग का, सबका बनूँ सहारा,
पर जब कदम बढ़ाये, सबने किया किनारा।
भले न देवी समझो, किन्तु मानवी मानो,
आने दो जग में, पाने दो जो पाना है।।
मेरी कारा.......
रचयिता
शिवानी केशवम्,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कुठिलालायकपुर,
विकास क्षेत्र- शीतलपुर,
जनपद- एटा।
Very nice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर👍👍👍
ReplyDelete