हिंदी साहित्य के पितामह :हरिश्चंद्र

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे गए,

हिंदी में आधुनिकता के रचनाकार कहे गए।

मूल नाम था हरिश्चंद्र, भारतेंदु की पाए उपाधि,

युग की संधि पर खड़े कार्यकाल कहे गए।।


9 सितंबर 1850 वाराणसी में अवतरण हुआ,

भारतीय नवजागरण का अग्रदूत माना हुआ।

समकालीन समाज का किया सफल चित्रण,

हिंदी को राष्ट्रभाषा रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास हुआ।।


बहुमुखी प्रतिभा के धनी, हिंदी के थे पत्रकार,

काव्य के क्षेत्र में था योगदान और थे नाटककार।

खड़ी बोली से हिंदी नाटक की नींव सुढृढ़ बनाई,

उत्कृष्ट कवि थे व्यंग्यकार, ओजस्वी गद्यकार।।


संपादक, निबंधकार, कुशल वक्ता भी रहे,

रचना क्रम से पथ प्रदर्शक भारतेंदु रहे।

प्रेम माधुरी, प्रेम तरंग, प्रेम प्रलाप लिखा,

विनय प्रेम पचासा और प्रातः स्मरण रहे।।


प्रधानत: ब्रजभाषा, खड़ी बोली को दिया आयाम,

सरल व्यवहारिक भाषा ने दिया एक मुकाम।

मुहावरों के प्रयोग से कुशलता को लाए,

श्रृंगार के दोनों पक्षों में सफल रहे नाम।।


दीन दुखियों की सेवा में अपना धन था लुटाया,

उदारता के कारण आर्थिक कमी ने मुँह उठाया।

6 जनवरी 1885 नश्वर संसार  से ली विदाई,

वर्तमान के व्याख्याता, भविष्य के दृष्टा बन नाम कमाया।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

Comments

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