हिन्दी पत्रकारिता दिवस

किसी देश की व्यवस्था में,

चौथा स्तंभ होता है यह।

देश दुनिया में हो रहा क्या,

जन मानस तक पहुँचाता यह।।


चार स्तम्भों में खड़ी इक इमारत,

अपने सौंदर्य पर इठलाती इतराती है।

नाज़ुक होते ही एक स्तम्भ के,

बेतहाशा जोर से डगमगाती है।।


कुछ समय पश्चात ही वह इमारत,

खण्डहर में परिणित हो जाती है।

इसका इठलाना इतराना सौंदर्यदर्प

सब नियति क्षणभंगुर कर जाती है।।


इसी  तरह  देश के संचालन में,

प्रेस हमारा एक चौथा स्तम्भ है।

इसकी स्वतन्त्रता ही देशहित में,

उत्कर्षता का प्रमुख उपबन्ध है।।


यदि यह बिका ज़मीर बेच अपना,

अमीर, क्रिमिनल, स्मगलर निर्भीक हैं।

कत्ल होगा सच का बढ़ेगा भ्रष्टाचार,

समझो उस देश का पतन भी नज़दीक है।।


धन लोलुपता में कतिपय पत्रकारगण,

बेचते ज़मीर अपना, खोते वजूद हैं।

अवसर देते हैं पनपने का भ्रष्टाचार को,                               क्षणभर को समाचारपत्र बनता सबूत है।।


आओ हम संकल्प  करें  आज यह,

प्रेस की स्वतंत्रता पर आँच नहीं आएगी।

न ही कोई दबाव होगा, और न  ही प्रलोभन,

निष्पक्ष लेखन की आवाज गूँज जाएगी।।


तभी समझो सफल हमारा यह,

हिन्दी पत्रकारिता दिवस।

सच के साथ निश्चल खड़ा हो यह,

चाहें पूर्णिमा हो या फिर अमावस।।


रचयिता
बी0 डी0 सिंह,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय मदुंरी,
विकास खण्ड-खजुहा,
जनपद-फतेहपुर।

Comments

Total Pageviews