अमर शहीद श्रीदेव सुमन

आओ नमन करें, उस निर्भीक निश्चयी देव श्री देव को,

माँ के पदों में  सुमन सा रख दूँ समर्पण  शीश  को।


अपनी जन्मभूमि के प्रति ऐसी अपार बलिदानी  भावना रखने वाले तरुण तपस्वी अमर शहीद श्रीदेव सुमन जी का जन्म टिहरी गढ़वाल जिले की बमुँड पट्टी के ग्राम जौल में 25 मई 1916 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री हरिराम बडोनी और माता जी का नाम श्रीमती तारा देवी था। इनके पिता अपने इलाके के लोकप्रिय वैद्य थे। सुमन जी की प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव और चंबा खाल में हुई और 1931 में  टिहरी से हिंदी मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने विद्यार्थी जीवन में 1930 में जब यह किसी काम से देहरादून गए थे तो सत्याग्रह जत्थों को देखकर वे उनमें शामिल हो गए। 1931 में यह देहरादून नेशनल हिंदू स्कूल में अध्यापन करने लगे, साथ ही साथ अध्ययन भी करते रहे। पंजाब विश्वविद्यालय से इन्होंने ‘रत्न भूषण’ और 'प्रभाकर' परीक्षाएँ उत्तीर्ण की फिर हिंदी साहित्य सम्मेलन की 'विशारद' और साहित्य रत्न की परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण कीं। 1938 में यह गढ़वाल भ्रमण पर गए और जिला राजनीतिक सम्मेलन श्रीनगर में शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने जवाहरलाल नेहरू जी को गढ़वाल की दुर्दशा से परिचित कराया। वहीं से इन्होंने जिला गढ़वाल और राज्य गढ़वाल की एकता का नारा बुलंद किया। इनके शब्द थे, “मैं अपने शरीर के  कण कण को  नष्ट हो जाने दूंगा लेकिन टिहरी के नागरिक अधिकारों को कुचलने नहीं दूंगा।” इन्होंने 3 मई 1944  मैं अपना ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। इस बीच इन पर कई  अत्याचार किए गए। इन के मनोबल कोे गिराने की कोशिश की लेकिन यह अपने विरोध पर कायम रहे। 20 जुलाई की रात से ही उन्हें बेहोशी आने लगी और 25 जुलाई 1944 को शाम करीब 4:00 बजे इस अमर सेनानी ने अपने देश, अपने आदर्श की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी रात  जेल प्रशासन ने उनकी लाश एक कंबल में लपेट कर भागीरथी संगम के नीचे  तेज  प्रवाह मैं फेंक दी। सुमन जी के बलिदान का अध्य पाकर आंदोलन और तेज हो गया। अगस्त 1949 को टिहरी राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय हुआ। तब से प्रतिवर्ष 25 जुलाई को सुमन जी की स्मृति में 'सुमन दिवस’ मनाया जाता है। अब  पुराना टिहरी शहर जेल और काल कोठरी तो बाँध में डूब गई हैं। लेकिन नई टिहरी की जेल में वह हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ सुरक्षित हैं। हजारों लोग वहाँ जाकर उनके दर्शन कर उस अमर बलिदानी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, जिसने मरना सीख लिया है।

“जिसने मरना सीख लिया हो, जीने का अधिकार उसी को।

जो काँटों के  पथ पर आया, फूलों का उपहार उसी को।।


लेखक
मनीषा डोभाल,
सहायक अध्यापक,
राजकीय कन्या पूर्व माध्यमिक विद्यालय नकरौंदा,
विकास खण्ड-डोईवाला,
जनपद-देहरादून,

उत्तराखण्ड।



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