भगवान बुद्ध

शुद्धोधन के राजदुलारे,

माया की आँख के तारे।

करने को उद्धार हमारा,

लुम्बनी में आप पधारे।


राजमहल में बचपन बीता,

ना पड़ी दुःख की परछाई।

एक दिन सच से हुआ सामना,

देखी जग की सच्चाई।


देख लिया लाचार बुढ़ापा,

देखी फिर कंधों पे विदाई।

देख निर्धनता और लाचारी

समझी तुमने पीर पराई।


द्रवित हुआ हृदय फिर तेरा,

दुनिया फिर रास ना आई।

क्यों मिलते हैं कष्ट ये सारे,

ये बात समझ ना आई।


यशोधरा राहुल त्याग दिये,

महलों सुख भी त्यागे।

सत्य खोजने में फिर तुमने,

वन-वन के चक्कर काटे।


बोधगया में प्राप्त हो गया,

दिव्य ज्ञान फिर तुमको।

मानव जीवन के रहस्य सारे,

समझ आ गए तुमको।


हिंसा ना करना ना चोरी तुम,

और ना नशा, झूठ, व्यभिचार।

पंचशील सिद्धान्त यही हैं,

मानव जीवन के सार।


अनुसरण करे जो प्रभु तेरा,

जीवन हो उसका साकार।

दुःख व संकट से रहे सुरक्षित,

उसका घर और द्वार।


मानवता से बड़ा नहीं है,

धर्म कोई भी प्यारे।

जाति पात, ईर्ष्या, क्रोध,

हैं शत्रु बड़े हमारे।


करके अनुसरण प्रभु आपका,

हम जीवन सरस बनाएँ।

बाँटकर सुख दुःख आपस में,

हम मानव धर्म निभाएँ।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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