जाग नींद से

 विधाता ने जब तुझे गढ़ा था, 

सुंदर सपना देखा था।

हरी भरी धरती दी तुझको, 

स्वच्छ आसमां सौंपा था।

निर्मल जल और शुद्ध हवा दी

 तेरे जीवन जीने को।

पर तेरी आकांक्षाओं ने 

चीर दिया वसुधा के सीने को।

प्रकृति को नष्ट किया और

 छीन लिया धरती का गहना

वाह रे वाह क्या तेरा कहना।

सुख साधन पाने की खातिर

 संसाधन सब नष्ट किए।

अपनी करतूतों के कारण

दारूण दुःख हैं तुझे दिए।

अभी वक्त है जाग नींद से 

सही राह को चुन ले तू।

ईश्वर की सृष्टि के साथ

 खेल खेलना छोड़ दे तू।

प्रकृति से मित्रता का

 रिश्ता बनाना होगा तुझे

तभी आने वाली पीढ़ियों को

 जीवनदान मिल पाएगा।

ईश्वर की सृष्टि का कोना-कोना

 फिर  से एक दिन सज जाएगा।

महकेगा संसार एक दिन

 फूल खुशियों के खिल जाएँगे।

मानव और प्रकृति मित्रता के

 सूत्र में गर बँध जाएँगे।


रचयिता

शालिनी शर्मा,

सहायक अध्यापक,
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय छापुर,
विकास खण्ड-भगवानपुर,
जनपद-हरिद्वार,
उत्तराखण्ड।

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