शत् शत् नमन

शहीद की पत्नी अपने पति को शान्त सोये हुए देखकर,  कुछ इस तरह उठने के लिए कहती है,

सुनो ना,,,,,,,,,,,,

पिया तुम क्यूँ  रूठ के,
सोये हो।
आये हैं लोग बहुत
तुम किन सपनों में खोये हो।

आर्मी के  साथी आये,
तुम्हें  पहुँचा,,,,
ऐसी भी क्या बात  हुई।
मुन्ना तुम्हें  कब से पुकारे,
उठो, जागो अब प्रभात हुई।

गाँव की चाची, दादी बोले
खत्म  तेरा  सुहाग हुआ।
उठा और बतला दो इनको,
अमर, अखण्ड मेरा सुहाग रहा।

अम्मा  रोये  ज़ार - ज़ार,
बाबू जी सुध-बुध खोये हैं।
बहना  हुई  अचेत  देखो,
आज  कैसे निर्दयी हुए हो।

कान  पकड़ती  हूँ  मैं,
फिर न कभी सताऊँगी।
जब  जैसा  कहोगे,
नंगे पाँव  दौड़ी आऊँगी।

अब उठ भी जाओ  मेरे  पिया ,,,
कितना  मुझे  रुलाओगे।
कितना  मुझे सताओगे,,,,,

पिया तुम क्यों रूठ के सोये हो,,,,,,,,,,,,,

रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी, 
जनपद-जौनपुर।

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