महिला सशक्तीकरण 225, संयुक्ता सिंह, जौनपुर

*👩‍👩‍👧‍👧महिला सशक्तीकरण विशेषांक-225*
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*मिशन शिक्षण संवाद परिवार की बहनों की संघर्ष और सफ़लता की कहानी*
(दिनाँक- 23जुलाई 2020)
नाम:- संयुक्ता सिंह
पद:- प्रधानाध्यापक
विद्यालय:- प्राथमिक विद्यालय बथुआवर सिकरारा जौनपुर

*सफलता एवं संघर्ष की कहानी :-*👉🏼

नियुक्ति तिथि  16-08-2014
वर्तमान विद्यालय में नियुक्ति - 16-08-2014

संदेश - जब टूटने लगे हौंसला तो बस यह याद रखना,
बिना मेहनत के हासिल तख़्त-ओ-ताज नहीं होते,
ढूंढ लेना अंधेरे में ही मंजिल अपनी दोस्तों,
क्यूंकि जुगनू कभी रौशनी के मोहताज नहीं होते।

विद्यालय की समस्याएं-

  1- दिनांक 16-08-2014 को जब प्राथमिक विद्यालय बथुआवर में मेरी नियुक्ति हुई तो विद्यालय  केवल दो शिक्षामित्रों के भरोसे चल रहा था, तथा वित्तीय कार्य एनपीआरसी के जिम्मे था, इसलिए विद्यालय में मेरी नियुक्ति के साथ ही प्रधानाध्यापक का समस्त कार्यभार भी मुझे उसी दिन मिल गया , वहां का भौतिक परिवेश और बच्चों की स्थिति को देखकर मुझे इस विद्यालय के चयन के विकल्प को लेकर बहुत पछतावा होने लगा, मुझे ऐसा लगा कि मैं कैसे अपनी सोच को अंजाम दे पाऊंगी।लेकिन मैंने उपरोक्त पंक्तियों को सोचकर उसी दिन अपने मन में यह संकल्प लिया कि सिकरारा ब्लाक के निम्न स्तर के इस विद्यालय को सिकरारा ब्लाक में ही नहीं बल्कि जनपद जौनपुर में स्थापित करूंगी ।
 
2- विद्यालय का भौतिक परिवेश अत्यंत ही खराब था और देखने मे भी परिषदीय विद्यालय लगता ही नही था। दो खंडहर बिल्डिंग जिसमें खतरनाक जानवरों का डेरा रहता था। अक्सर सांप बिच्छू विषखोपड़ा दिखाई देते थे। उसको मैंने अपने परिवार की मदद और एसएमसी व सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी के प्रस्ताव पर  जेसीबी लगाकर उसको ध्वस्त करवाकर करीब 50 ट्राली मिट्टी पटवाकर परिवेश को विद्यालय का स्वरूप प्रदान करने का कार्य किया।

3- हमारे विद्यालय में गेट व चहारदीवारी नहीं था जिससे जो पेड़ पौधे लगाए जाते थे  उन्हें जानवर खा जाते थे और गांव के बच्चे भी विद्यालय के परिवेश को नुकसान पहुचाते थे। इसके लिए मैंने खंड विकास अधिकारी से बात करके ग्राम प्रधान के माध्यम से गेट व चहारदीवारी का निर्माण कराया। अब इस तरह की समस्या नहीं है।

4- विद्यालय कैम्पस में पहले से मौजूद बहुत पुराने बरगद के दो विशाल वृक्षों का सुंदरीकरण कराकर चबूतरा का निर्माण कराया,इसके बाद पेड़ पौधे लगवाये। जिससे अब विद्यालय का भौतिक परिवेश अत्यंत सुंदर दिखाई देता है।
 
  5- विद्यालय में केवल दो ही कमरे बचे थे। जिसकी छत फर्श खिड़की दरवाजों का बृहद मरम्मत कराकर बच्चों के बैठने लायक बनाया गया।
 
6- विद्यालय में मुश्किल से 12 से 15 बच्चे पढ़ने आते थे।जिसके लिए मैंने वहाँ पहले से नियुक्त 2 महिला शिक्षामित्र के साथ व्यापक अभिभावक जनसंपर्क अभियान प्रारंभ किया और नामांकन बढ़ाने के लिए एक रजिस्टर पर अभिभावकों के नाम व मोबाइल नंबर लिखकर उनसे प्रतिदिन फोन द्वारा संपर्क करके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करने लगी जिसके परिणाम स्वरूप 12 से 15 उपस्थिति वाले इस विद्यालय में एक ही महीने के अंदर लगभग 35 से 40 बच्चे आने लगे।
 
7- मुझसे पूर्व नियुक्त प्रधानाध्यापक के गलत आचरण के कारण जहाँ विद्यालय के प्रति गांव के लोंगो का विद्यालय से विश्वास टूट गया था मेरे कठिन प्रयास से वही मैं प्रत्येक महीने विद्यालय में अभिभावकों की बैठक आहूत करने लगी जिससे ग्रामीण व जन समुदाय का विद्यालय से जुड़ाव होने लगा। विद्यालय में मेरे साथ शिक्षामित्रों के द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर निरंतर कार्य किया जाने लगा जिसका परिणाम भी सत्रांत तक दिखाई देने लगा।
  
8- विद्यालय में कुर्सी, मेज, आलमारी, रजिस्टर, बच्चों को बैठने के लिए चटाई, खाने के लिए प्लेट कुछ भी नही था और न ही विद्यालय के किसी खाते में इन सबके खर्च के लिए पैसे। मैंने अपने वेतन से धीरे धीरे कुछ महीने में आवश्यकतानुसार समस्त व्यवस्था की।
  
9- इसके बाद बच्चों को बैठने के लिए 20 सेट डेस्क बेंच दोनो कमरों के लिए व्हाइट बोर्ड, तथा बच्चों के लिए स्वेटर टोपी,आईकार्ड, की व्यवस्था मैने अपने व्यक्तिगत श्रोत से प्रदान किया। जिससे बच्चों के नामांकन व ठहराव में व्यापक सुधार दिखाई देने लगा।
 
10-  विद्यालय के बच्चों में गुणवत्तापरक शिक्षा का अत्यंत अभाव होने के बाद मैंने गुणवत्तापरक शिक्षा पर वृहद कार्य करते हुए बच्चों को जोड़-घटाना गुणा-भाग, गिनती-पहाड़ा तथा मात्राओं का ज्ञान इत्यादि पर परिश्रम किया जिससे बच्चों में इन सब कमियों पर सुधार परिलक्षित होने लगा।
 
11- इसके बाद मैंने बच्चों में रचनात्मकता व कलात्मकता इत्यादि कौशलों का विकास करने के लिए बच्चों से मूर्ति बनवाना, चित्र बनाना, क्राफ्ट व कला का कार्य कराना विभिन्न त्यौहारों को उत्साह के साथ मनाना, महापुरुषों की जयंती मनाने व समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन कराना इत्यादि कार्यो को कराने का कार्य किया।
 
12- अक्टूबर 2014  के कुल  54 नामांकन के सापेक्ष  आज  विद्यालय में  कुल  126 बच्चे नामांकित है तथा विद्यालय का भौतिक परिवेश व बच्चों का नामांकन व उपस्थिति के कारण यह विद्यालय विकास क्षेत्र सिकरारा के उत्कृष्ट विद्यालय में शामिल हो चुका है और यहां के बच्चे और अभिभावक विद्यालय में आने पर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं।
कवि सोहन लाल द्विवेदी जी ने कहा है कि-
"कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।"
अब वह दिन दूर नहीं जब मेरा यह विद्यालय जनपद के उस उत्कृष्ट विद्यालयों की श्रेणी में शामिल होगा।

पुरस्कार -
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1- 15 जनवरी 2018 को ICT कार्य के लिये मुख्य विकास अधिकारी श्री गौरव वर्मा जी द्वारा सम्मानित किया गया।

2- 14 नवंबर 2018 में प्राचार्य डायट श्री राजेश श्रीवास्तव जी द्वारा मेरे विद्यालय पर  टीएलएम मेले का अनुश्रवण करके प्रोत्साहित किया गया।

3- 10 दिसम्बर 2018 को जिला बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी डॉ राजेन्द्र सिंह जी और खण्ड शिक्षा अधिकारी श्री राजीव यादव जी द्वारा विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में सम्मानित किया गया।

4- 28 जुलाई 2019 को मिशन शिक्षण संवाद द्वारा आयोजित कार्यशाला में जिला समन्वयक प्रशिक्षण श्री सुरेश पाण्डे जी व जिला समन्वयक सामुदायिक श्री आशीष श्रीवास्तव जी द्वारा सम्मानित किया गया।

5- सिकरारा में सम्पन्न हुए 2018 की जिला रैली में पूर्णतया संचालन का कार्य, 2019 मे पुनः उत्कृष्ट शिक्षक का पुरस्कार तथा 6 व 7 मार्च 2020 को पूरे प्रदेश में प्रथम बार जनपद जौनपुर के सिकरारा ब्लाक में आयोजित रंगोत्सव 2020 कार्यक्रम में पूर्ण रूप से संचालन के कार्य के साथ साथ जिलाधिकारी श्री दिनेश कुमार सिंह जी, मुख्य विकास अधिकारी श्री अनुपम शुक्ल जी व जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी श्री प्रवीण कुमार तिवारी जी द्वारा विद्यालय में मेरे कार्यो व मेरे विद्यालय के बच्चों के परफॉर्मेंस को खुले मंच से सराहा गया।
"जीवन में असली उड़ान अभी बाकी है,
हमारे इरादों का इंतिहान अभी बाकी है।
अभी तो नापी है सिर्फ मुट्ठी भर जमीन,
अभी तो सारा आसमान बाकी है।।
       धन्यवाद

_✏संकलन_
*📝टीम मिशन शिक्षण संवाद।*

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