शक्ति दर्शन 5, गीता यादव, फतेहपुर

*👩🏻‍💼शक्ति दर्शन 5👩🏻‍💼*

*_मन की बात.......................आर्थिक स्वतंत्रता_*
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आज के समय में जितनी चर्चा मंच के माध्यम से महिलाओं की स्वतंत्रता व उनके सशक्तिकरण के बारे में की जाती है उतनी स्वतंत्रता उन्हें वास्तविक जीवन में देखने को नहीं मिलती है इसके आगे अगर आर्थिक स्वतंत्रता की बात की जाए तो इसमें भी महिलाएं कहीं ना कहीं इसी पुरुष प्रधान समाज के समक्ष पुरुषों के पीछे ही बाट जोहते ही नजर आती हैं।

आज हर क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी पहचान व दबदबा अपनी काबिलियत की दम पर हासिल किया है चाहे सरकारी सेवा का क्षेत्र हो,या सांस्कृतिक क्षेत्र या फिर साहित्यिक।
हर क्षेत्र में महिलाओं की काबिलियत के दम पर अपना एक मुकाम है।
फिर भी वर्तमान परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो स्थितियां वैसे ही नजर आती हैं जैसे पूर्व में कई दशकों में महिलाओं की हालत रही है कुछ बदलाव की बयार जरूर आई है लेकिन सोच में परिवर्तन पूर्ण रूप से अभी भी नजर नहीं आता है,ग्रामीण क्षेत्रों की ओर रूख करें  तो आप पाएंगे की घर के हर छोटे कार्य से लेकर बड़े कार्य में महिलाओं की सहभागिता होती है लेकिन फिर भी प्रतिनिधित्व पुरुष का ही होता है।
राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो महिलाओं के लिए आरक्षण जरूर प्राप्त होता है लेकिन उस आरक्षण की दम पर हुक्मरान अधिकतर पुरुष ही देखने को मिलते हैं, बहुत सारी नौकरी पेशा महिलाएं आज भी अपनी कमाई का सारा हिसाब पुरूष सत्ता को सौपने को मज़बूर है।

वास्तविक हालात यह है कि घर की लक्ष्मी कही जाने वाली लक्ष्मी स्वयं ही आर्थिक रूप से शोषण का दंश झेल रही है। आर्थिक तंगी की वजह से ही आज बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाती हैं। जिसके जिसके कारण भारत में अशिक्षा बढ़ रही है क्योंकि एक महिला अपने आप में एक परिवार होती है। महिलाओं को आर्थिक पिछड़ेपन से बचाने के लिए सरकार ने बहुत सारी योजनाएं चलाई हैं किंतु जब तक उसका धरातल रूप में वास्तविक असर नहीं हो पाता हम यह नहीं कह सकते कि यह प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं इसके लिए हमें खुद को भी आगे आना पड़ेगा और अपनी सोच भी बदलनी पड़ेगी।
जरूरत है समय की,
हाँथ से हाँथ मिले। 
बराबरी का दो अधिकार,
कदम से कदम बढ़े॥

इनको दो आर्थिक आजादी,
स्वतंत्रता तब ही सच्ची। 
नाम करेंगी यह भी रोशन,
यह बात होगी सबसे अच्छी॥

खेल से लेकर राजनीति,
हर जगह छाप छोड़ती हैं।
थोड़े से संसाधन में,
दिशाओं का रुख मोड़ती हैं॥

आज देखो हर जगह,
महिलाओं का आर्थिक शोषण।
विषम परिस्थिति इनको दोगे,
कैसे होगा इनका पोषण॥

घर की लक्ष्मी होती महिला,
दो दो घर यह  संभालती है।
खुद तकलीफ सहकर जी,
हर फर्ज ये अपना निभाती है॥

*लेखिका:-*
*गीता यादव*
प्रा. वि. मुरारपुर
देवमई, फतेहपुर
*संकलन:-*
*सरिता रॉय*
*मिशन शिक्षण संवाद शक्ति परिवार*

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