कारगिल विजय दिवस

भारत के वीर सपूतों ने अरि को फिर ललकारा था।
अपने शोणित की लाली से, वसुधा की प्यास बुझाया था।
दुश्मन की छाती पर, रख पैर जोश बहुत दिखलाया था।
अपने प्राणों की आहुति से, देश का मान बढ़ाया था।
जीवन के नव अरमानों की सुन्दर प्रतिमा को त्याग दिए।
रूप सिंगार की बेला में नव वधू के स्वप्न बिसार चले।
माँ भारती की एक पुकार पे, सब कुछ अर्पण कर आया था।
कितने घर हुए सुने, कितनी माँओं के लाल गए।
कितनी सुहागिनों ने अपने सुहाग, निज देश पर कुर्बान किये।
ये शान रहे ये आन रहे, जब तक जां में ये जान रहे
है कसम हमें अपने दिल की, ये सर ना कभी झुकाया था।
सौभाग्य सदा है उन वीरों का, जो लिपट तिरंगे में आये
एक बेटे की कुर्बानी से, माँ ने दूजा भी भेंट चढ़ाया था।
दुश्मन को यूँ ललकार दिया, कारगिल में झंडा गाड़ दिया।
अपनी भूमि की रक्षा में, वीरों ने जान को गँवाया था।
अपने लहू की बूँदों से तिरंगे का मान बढ़ाया था।
उनकी जां का हम मान रखे, आओ हम एक रहे
धरती माँ के हर टुकड़े पर, शहीदों ने परचम लहराया था।
ये विजय दिवस की कहानी है, वीरों की अदम्य बयानी है।
दृण प्रतिज्ञ हो, साहस शक्ति से लिख गए अमर कहानी है।
है शौर्य गाथा उन वीरों की हो, रक्षा में बलिदान हुए
ऐसे वीरों को नमन करो जो कारगिल में कुर्बान हुए।
अपने तन की आहुति से, चमन में एक मिसाल हुए
निज लहू से सींच इस धरती को, दो फूल खिला बागबान हुए।
दो फूल खिला बागबान हुए।।
                 
रचयिता
मंजरी सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उमरी गनेशपुर,
विकास खण्ड-रामपुर मथुरा,
जनपद-सीतापुर।

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