बचपन की नागपंचमी

जब छोटे थे मिट्टी लपेट अखाड़े में आ जाते थे।
अपने साथी को दाँव सिखाते थे,
खुद भी हार जाते तो अपने से कमजोर प्रतिद्वन्दी की खोज कर अपनी जीत पर इठलाते थे।
सुबह उठ नाग देवता की पूजा में दुग्ध लावा चढ़ाते थे,
माँ से घर की दीवाल पे साँप की आकृति बनाते देख सवालों के पहाड़ खड़ा कर देते थे।
बहुत याद आते है वो दिन, जब मिट्टी की खुशबू शरीर से आती थी,
अब बच्चो को मिट्टी से एलर्जी हो जाती है,
चोट लगने पे मिट्टी लगा के ठीक हो जाते थे,
आज डॉक्टर भी उस बात को जानकर अचंभा खा जाते हैं।
हमारी संस्कृति ने साँप को भी दूध पिलाना सिखाया है।
हर जीव हमारे लिए उपयोगी है ये बतलाया है,
नाग हमारे लिये कितने उपयोगी हैं ये प्राचीन परम्परा से ही पूजन योग्य है ये हमें बतलाया है,
हमारे पूर्वजों ने नागपंचमी का त्योहार इसी लिए बनाया है।

रचयिता
सुनील कुमार राय,
प्राथमिक विद्यालय चक चमैनिया,
विकास खण्ड-गड़वार,
जनपद-बलिया।

Comments

Total Pageviews