फलों की रेल

रेल चली भई, रेल चली।
सबको संग में लेके चली।।

अनार बना था उसमें टीटी,
बजाये अंगूर हाथ ले सीटी।
पहले बैठे सेब और केला,
सब देखन को चले हैं मेला।।

दूजे डिब्बे बैठा आम,
सुबह से देखो हो गई शाम।
तीजे में बैठा मोटा अनानास,
रुकी गाड़ी उतरने का प्रयास।।

फिर आई लीची की बारी,
उतर चली वो सँभाल के साड़ी।
फिर बैठे पपीता भारी,
करें मौज सब बारी-बारी।।

तरबूज भी करता अपना काम।
करो तुम याद फलों के नाम।।

रचयिता
आयुषी अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास,
विकास खण्ड-कुन्दरकी,
जनपद-मुरादाबाद।

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