बूझो तो जानें
1-बहती चली आती हूँ
जीवन साथ में लाती हूँ
गैसों का हूँ मैं गोला
नाम से क्या कहलाती हूँ।
2-प्यासे पथिक की प्यास बुझाता
बहता जीवन है कहलाता
रंग गन्ध से है यह हीन
इसमें रहती हैं सब मीन।
3-उमड़ घुमड़ कर शोर मचाते
बूँदों का यह घर बन जाते
काले-काले हैं घनघोर
सोचो जरा लगा कर जोर।
4-पूरव से है यह आता
पश्चिम में जाकर छिप जाता
गर्मी धूप से है भरपूर
रात में जाता हमसे दूर।
5-साँझ ढले तब हूँ मैं आता
साथ में अपने रोग हूँ लाता
न तुम समझो मुझको हीन
कान में आकर बजाता बीन।
रचयिता
तिलक सिंह,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रतरोई,
विकास खण्ड-गंगीरी,
जनपद-अलीगढ़।
जीवन साथ में लाती हूँ
गैसों का हूँ मैं गोला
नाम से क्या कहलाती हूँ।
2-प्यासे पथिक की प्यास बुझाता
बहता जीवन है कहलाता
रंग गन्ध से है यह हीन
इसमें रहती हैं सब मीन।
3-उमड़ घुमड़ कर शोर मचाते
बूँदों का यह घर बन जाते
काले-काले हैं घनघोर
सोचो जरा लगा कर जोर।
4-पूरव से है यह आता
पश्चिम में जाकर छिप जाता
गर्मी धूप से है भरपूर
रात में जाता हमसे दूर।
5-साँझ ढले तब हूँ मैं आता
साथ में अपने रोग हूँ लाता
न तुम समझो मुझको हीन
कान में आकर बजाता बीन।
रचयिता
तिलक सिंह,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रतरोई,
विकास खण्ड-गंगीरी,
जनपद-अलीगढ़।
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