चार का पहाड़ा

धक्के से चलती हर बार,
   चार टाँग की बुढ़िया कार।
पीकर लस्सी खाकर पान,
    बैठे उस पर आठ जवान ।
शुरू हो गया ठेलम-ठेल,
    डाला बारह लीटर तेल ।
फिर भी बना न कोई काम,
   सोलह घंटे हुए तमाम ।
थककर हुए सभी जब चूर,
    लाये गए बीस मज़दूर ।
मज़दूरों ने माँगी फीस,
    फिट कर दिए पेंच चौबीस
पैसा करे कौन भुगतान,
    लड़े अट्ठाईस बार जवान ।
बात बात में बिगड़ी बात,
    उखड़ गए बत्तीस दाँत ।
गाल फुलाकर लेकर टीस,
    पैदल गये मील छत्तीस
दे दी फिर डॉक्टर की फीस,
    खर्च हुए रुपये चालीस

रचयिता
प्रतिभा पटेल,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय लुडहा,
जनपद-चित्रकूट।

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