स्कूल चलो अभियान

गाँव वालों तुम्हे सूझे,क्यों प्रगति का रस्ता नहीं?
हाथ में इन बच्चों के क्यों औजार हैं,बस्ता नहीं?

आँखों से चमक गायब है,चेहरे पर विश्वास नहीं।
आपकी जिंदगी में क्यों, खुशियों की वर्षा नहीं?

गाँव वालों तुम्हे सूझे क्यों,प्रगति का रस्ता नहीं?
हाथ में इन बच्चों के क्यों,औजार हैं,बस्ता नहीं?

बच्चों से काम न कराओ,स्कूल में प्रवेश दिलाओ,
विद्या धन ऐसा धन है,चोर तक चुरा सकता नहीं।

बात यह सच जानो,लड़का लड़की बराबर मानो,
पढ़ी लिखी नारि का घर,मुश्किलों में फँसता नहीं।

गाँव वालों तुम्हे सूझे क्यों,प्रगति का रस्ता नहीं?
हाथ में इन बच्चों के क्यों औजार हैं,बस्ता नहीं?

वक्त पर दुल्हन बन सकती हैं,हर पिता की बेटियाँ,
मगर यहाँ दूल्हे का भाव, कहीं पर भी सस्ता नहीं।

शिक्षा पा उत्थान करो,जीवन को आसान करो।
शिक्षित लोगों की हालत,होती कभी खस्ता नहीं।

गाँव वालों तुम्हे सूझे क्यों प्रगति का रस्ता नहीं?
हाथ में इन बच्चों के क्यों औजार हैं,बस्ता नहीं?

रचयिता
प्रदीप कुमार,
सहायक अध्यापक,
जूनियर हाईस्कूल बलिया-बहापुर,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा,
जनपद-मुरादाबाद।

विज्ञान सह-समन्वयक,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा।

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