कहानी-मास्टर रामलाल की
मास्टर रामलाल जी बड़े सरल स्वभाव के व्यक्ति थे।उनकी गणना अच्छे शिक्षकों में होती थी। वे स्कूल में होने वाली पंचायत से कोसों दूर रहते थे।उन्हें बस एक ही धुन सवार थी पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई। साथ वाले कितना पढा़ते, कभी इसका हिसाब नहीं रखते। पर सरकार पगार कितना देती है ,इसका जरूर हिसाब रखते। पगार मिली नहीं कि घर की लक्ष्मी के हवाले सारी लक्ष्मी कर देते। कुछ मामूली जरुरतें थी, उसी के लिए कुछ जेबखर्च अपने पास रखते। स्कूल के बच्चे उन्हें बहुत प्यार करते थे। वे भी सोचते थे पगार तो इन्हीं को पढ़ाने के लिए मिलती है फिर पढ़ाने में कैसी कंजूसी? जब उनका प्रमोशन हुआ तो स्कूल के बच्चे लगे रोने ,उनका भी कलेजा फट पड़ा। उनके हेडमास्टर साहब ने विदा करते समय समझाया कि नौकरी में केवल सिद्धांत ही नहीं व्यवहारिक बातें भी होनी चाहिये। यह बात उन्हें समझ में आयी या नहीं पर सिर हिला दिया।
रामलाल जी के प्रमोशन में स्कूल के लिए विकल्प का लफड़ा फँसा। लेकिन उनको गाँव के बगल का स्कूल मिल गया। सारी जिन्दगी का आराम।
"बड़ा निक साहेब रहें, एक रूपिया न पड़ा। हमरे मनमाफिक स्कूल मिल गा नियरे है।"
बड़े फक्र से बताते फिरते। विकल्प वाले स्कूल में पहुँचेतो माथा ठनका। खण्डहर में स्कूल है कि स्कूल में खण्डहर है। सभी कमरों में घुड़दौड का आयोजन हो चुका था और पूरी दिवालों पर भूतों ने लड़ाई की थी। हाय! गाँव का नाम सुनकर विकल्प भरा था, धोखा हो गया।अब तो अगल-बगल के स्कूल भी भर गये। खैर, विपदा तो वीरों का भोजन है। बने को तो सभी बनाते हैं, बिगडे़ को हम बनायेगें।
उनके आने से स्कूल में पढ़ाई का वातावरण बना। पढ़ाई के माहौल से छात्र संख्या में वृद्धि होने लगी। अभिभावकों में पैठ भी बनने लगी। एक दिन उन्हें एक अभिभावक ने एक समाचारपत्र में छपी, पुरस्कृत शिक्षकों की फोटो दिखा दी।हालाँकि वे इस तरह के समाचारों को पहले भी पढ़ चुके थे। पर यदि कोई पीठ ठोक दे, तो बल बढ़ जाता है। रामलाल जी रात-दिन अमरता का वरदान पाने को व्याकुल हो गए।
मास्टर रामलाल जी, स्कूल के भौतिक परिवेश को बेहतर बनाने के लिए भाग-दौड़ शुरू कर देते हैं। सफलता भी इस वीर के कदम चूमती है। विद्यालय मरम्मत का अनुदान मंजूर हो जाता है। बड़े उमंग से स्कूल का कायाकल्प करवाया। स्वच्छ स्कूल, सुन्दर स्कूल बाहरी दीवार पर लिखवाया।
अब उपभोग प्रमाण पत्र में जेई साहब के हस्ताक्षर की जरूरत पडी़। रामलालजी साहब के ऑफिस में पहुँचे। जेई साहब हाथ की सभी अँगुलियों में सोने की मोटी-मोटी अँगूठियाँ धारण किए थे। मास्टरजी को अपने मोटे चश्मे से नापने-तौलने लगे।रामलाल जी ने बात की शुरुआत की।
"बड़ा.. निक ..स्कूल ..बनवाये हों ..साहेब।"
"कुछ खिसा में धरा है।"साहब बोले, उनके लिए अच्छा काम वही है जिसमें माल मिले।
"कुछ ..बचबे ..नहीं ..भा।"
"काहे नहीं बचाये।"
"काहे.. बरे..।"
"तो लेई जाओ आपन फरकत्ती।"
रामलाल जी को भी गुस्सा आ गया। अच्छे काम की तो कदर ही नहीं है।
बिना जेई साहब और विभागीय अधिकारियों के हस्ताक्षर व भोग दिए, उपभोग अधूरा रह गया। रामलालजी मुद्रा खर्च करने को तैयार न हुए। घर की लक्ष्मी ने भी समझाया पैसे आते -जाते रहेंगे। अधिकारियों ने मौका मुआयना किया, पर वे टस से मस होने को तैयार न हुए।
विभागीय कार्यवाही शुरू हुई। अन्ततः उन्हें दोषी पाया गया। समाचार- पत्रों में उनका नाम आ गया। रामलाल जी का मन मलीन हो गया। उनकी ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा का सूरज डूबने लगा। जिस अमरता का वरदान पाने के लिए रामलाल जी व्याकुल थे। वह उन्हें मिल गया।
व्यक्ति की मूल प्रवृत्ति कभी दफन नहीं होती, कुछ समय के लिए सुषुप्तावस्था में जरूर चली जाती हैं। ऐसा ही मास्टर रामलाल जी के साथ हुआ। वे अपनी आपबीती को दुःस्वप्न समझकर भूलने लगे। उनको खिलखिलाते, हँसते बच्चे मन को उमंगित करने लगे। उन्होंने अपने शैक्षणिक मनोभावों को चित्रकार से स्कूल की दीवारों पर बखूबी उभरवाया। जिससे बच्चों के सीखने में सरलता हो गई। उन्होंने शिक्षण-कला में अनवरत प्रयोग करना जारी रखा। बच्चों को नैतिकता का पाठ पढ़़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उन्हें ईमानदारी का कदर करने वाले अफसरों की फौज तैयार करने इच्छा जग गई थी। वे नहीं चाहते थे कि फिर किसी रामलाल को ईमानदारी के लिए दण्डित किया जाए। उनकी शिक्षा का सकारात्मक प्रभाव पड़ना शुरू हो गया था परिणाम दिखना बाकी था।
एक दिन गाँव में कोई घटना घट जाती है। जाँच-पड़ताल करने के लिए जिलाधिकारी महोदय स्वयं आते हैं। उनका पड़ाव रामलाल जी के विद्यालय में पड़ता है। जब जिलाधिकारी महोदय की नजर स्कूल की दीवारों पर की गई चित्रकारी पर जाती है, तो वे अभिभूत हो जाते हैं। वे इस जिले के कई स्कूलों में गए परन्तु ऐसी चित्रकारी किसी स्कूल में नहीं पाए। वे मास्टर जी से मुखातिब हुए तो उनकी सरलता के कायल हो गए। स्कूल का शैक्षणिक स्तर, मास्टर जी का अभिनव प्रयोग व बच्चों द्वारा प्रस्तुत शैक्षणिक गतिविधियाँ, उन्हें आश्चर्यचकित कर रही थी। जिलाधिकारी महोदय का काफिला कलेक्ट्रेट तो लौटा पर शिक्षक दिवस पर इस कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक को पुरस्कृत करने के दृढ़निश्चय के साथ।
शिक्षक दिवस के अवसर पर उन अधिकारियों के करतल ध्वनि सबसे तेज थी जिन्होंने उनके दामन को दागदार बनाया था।जिले का बेहतरीन शिक्षक का पुरस्कार पाकर रामलाल जी बच्चों से लिपट गए। अब सोना कुन्दन बन गया। रामलाल जी बेसिक शिक्षा विभाग के कोहिनूर बन गये थे।
आशाएँ कभी झूठी नहीं होती बशर्ते विश्वास दृढ़ हो। यदि कभी किसी कारणवश प्रकृति हमें दण्डित करती है तो बेहतर कार्य का इनाम भी देती है।
लेखक
विद्या सागर,
प्रधानाध्यापक,
प्रा०वि०-गुगौली,
विकास खण्ड-मलवां
जनपद-फतेहपुर।
bahut badhiya sir
ReplyDeleteThanks
Deleteकाँटे अगर चुभना नहीं छोड़ते हैं तो फूल महकना कैसे छोड़ देंगे।।।
ReplyDeleteMost welcome
DeleteBahut hi sundar rachana
ReplyDeleteThanks
Deleteवर्तमान स्थिति परिस्थिति का सटीक चित्रण
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