जय श्री कृष्ण

भाद्रपद माह कृष्णपक्षे अष्टमी, भगवान लिये धरती पर कृष्ण अवतार।

माता देवकी की कोख से जन्मे, करने को जन-जन का उद्धार।।


पले-बढ़े मैया यशोदा की गोद में, गौमाता से किया स्नेह दुलार।

बाललीला कर चोरी से खाये माखन, गोकुल में किये अनेकों चमत्कार।।


दुनिया को समझायी प्रीत प्रेम की, गोपियों, राधा संग रास रचाकर।

दोस्ती का महत्व समझाया, ग्वाल बालों संग गैया चराकर।।


 इंद्रदेव का घमंड चूर-चूर कर, बने जन-जन के तारणहार।

भ्राता बलराम संग जनरक्षा को, कंस आदि  असुरों का किया संहार।।


 ध्रुत क्रीड़ा में रखा द्रोपदी का मान, रक्षासूत्र का वचन निभाकर।

विधुर घर चटनी से रोटी खायी, अहंकारी दुर्योधन की मेवा ठुकराकर।।


कुरुक्षेत्र की रणभूमि मे दिया, अर्जुन को जीवन का सार।

गीता के उपदेश सुनकर, अभिभूत हुआ सारा संसार।।


हे कृष्ण! तुम हो सृष्टि के कण-कण में, हो संपूर्ण जगत के पालनहार।

 अपनी नेह रूपी कृपा दृष्टि से, हमारी नैया कर दो भवसागर से पार।।


रचयिता

अमित गोयल,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय निवाड़ा,

विकास क्षेत्र व जनपद-बागपत।



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