144/2024, बाल कहानी-16 अगस्त


बाल कहानी- शर्त 
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मोहनपुर गाँव में बारिश की वजह से नदी में बाढ़ का पानी भारी मात्रा में आ गया था। मोहनपुर गाँव में रहने वाले चार मित्र अक्सर उस नदी में तैराकी करते थे। एक दिन चारों मित्र खेत में बैठकर आपस में बातें कर रहे थे। 
चारों मित्र बारिश को लेकर बातें करने लगे। उसके बाद नदी में आई बाढ़ के बारे में चर्चा करने लगे। बातों ही बातों में चारों मित्रों ने शर्त लगाई कि-, "जो नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे पर तैरकर सबसे पहले पहुँच जायेगा, वह तैराकी में नम्बर वन कहलाएगा।"

ऐसा कहकर चारों मित्र नदी के किनारे पहुँचे और अपने-अपने कपड़े उतार कर रख दिए। फिर नदी में उतर गये। 
चारों मित्र नदी में एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश कर रहे थे। अचानक उसमें से एक मित्र बीच नदी में आये मलबे में फँस गया जो कि एक पेड़ का मलवा था। वह एक विशाल वृक्ष था, उसकी टहनियाँ नीचे पानी में थीं, जो कि दिखाई नहीं दे रही थीं। वह मित्र जोर-जोर से चिल्लाने लगा, आगे बढ़ रहे मित्रों ने उसे देखा और तुरन्त पीछे मुड़े। उन्होंने बड़ी मशक्कत के बाद उसे पेड़ की टहनियों से बाहर निकाला और नदी के किनारे ले आये।
उसके मुँह में काफी पानी चला गया था। बाहर निकाल कर उसे उल्टा लिटाकर उसके पेट से पानी निकाला गया। थोड़ा देर बाद उसे होश आ गया। किसी तरीके से उसकी जान बची। इस घटना के बाद से चारों मित्र बहुत ज्यादा डर गये। उसके बाद से उन्होंने कभी ऐसी शर्त नहीं लगायी, क्योंकि उन्हें समझ में आ गया था कि आग, पानी और बिजली से सदा दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि यह हमेशा मौत के मुँह में खींच कर ले जाते हैं।

संस्कार सन्देश- 
हमें कभी बिना बिचारे शर्त नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि शर्त में हमेशा एक अनदेखा खतरा छुपा होता है।

लेखिका-
शालिनी (स० अ०) 
मैंनपुरी- (उत्तर प्रदेश)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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