147/2024, बाल कहानी-21 अगस्त
बाल कहानी- बाबा का सपना
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बाबा साहब डॉ० भीमराव अम्बेडकर का जन्म भले ही एक प्रतिष्ठित दलित परिवार में हुआ हो, पर उनको उन सारी समस्यायों से गुजरना पड़ा, जो उस समय अपनी चरम पर थीं। छुआ-छूत उनमें सबसे बड़ी समस्या थी। शिक्षा भी सबको नहीं मिल पाती थी। समाज के हर क्षेत्र में असमानता बढ़ी हुई थी।
बचपन से ही इनके मन में समाज के प्रति बड़ी संवेदना रही है। अपने पिता जी से वे रामायण एवं महाभारत के कथा- प्रसंगो को सुना करते थे। ऐसा लगता है कि उनके मन में मानस की एक चौपाई, जिसे वे कई बार अपने पिता जी से सुन चुके थे, मन में गूँजा करती थी। वह चौपाई थी- "नहिं दरिद्र कोउ दुःखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लक्षन हीना॥"
इसका अर्थ वे भली प्रकार अपने पिता जी से जान और समझ चुके थे । बाबाजी के मन में अपने देश के प्रति बड़ी श्रृद्धा थी, परन्तु समाज की विषमता एवं विद्रूपता को देखकर उनके मन में बड़ी पीड़ा होती थी। उनका सपना था- समाज में व्याप्त बुराइयों, वो चाहे छुआछूत हो, अशिक्षा हो, नारी उपेक्षा हो, बाल विवाह हो, अथवा आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक असमानता हो, सभी को दूर कर एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना। बाबा साहब के सपनों का भारत ऐसा था, जहाँ ये सारी समस्याएं न हों। कोई दरिद्र न हो, कोई दुःखी न हो, कोई अशिक्षत न हो। समभाव हो, समानता हो, समरसता हो, सबको समान अधिकार हो। किसी के साथ कोई भेद-भाव न हो।
उनकी कठिन मेहनत, पढ़ाई, दृढ़संकल्प एवं सकारात्मक प्रयास का परिणाम है कि आज हर तरफ समानता एवं समभाव दिखाई पड़ने लगा है। आज छुआ-छूत लगभग मिटने के कगार पर है। सभी को समानता का अधिकार मिला हुआ है। सामाजिक विषमता दूर हो रही है। दलितों, वंचितों को भी बराबरी का दर्जा मिल रहा है। पढ़ाई, नौकरी एवं राजनीति में वे मुख्य धारा से बराबर जुड़ते चले जा रहे हैं।
महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलने लगे हैं। सम्पत्ति में महिलाओं को बराबर की हिस्सेदारी मिलना बाबा साहब का विशेष सपना था, जो आज पूरा हो चुका है।
गाँधी जी के रामराज्य की परिकल्पना को ही उन्होंने अपने सपनों का भारत बना लिया था। तभी तो संविधान में जो नियम-कानून बनाये गये, उनमें सबको समानता का अधिकार देने की बात कही। शोषितों, वंचितों, दलितों सबके दुःखों को दूर करने की बात कही। सबसे अहम बात यह है कि उनके सपनों का भारत उनका रामराज्य ही था। तभी तो संविधान के मुख पृष्ठ पर रामदरबार का चित्र रखने का सुझाव दिया कि हर पढ़ा-अनपढ़ा व्यक्ति भी अपने संविधान की मूल भावना को समझ सके। उनके इस सुझाव को उस समय सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। आज उसी संविधान के मार्ग पर चलकर वर्तमान सरकार उनके सपनों का भारत बनाने में अपना पचरम लहरा रही है।
संस्कार सन्देश-
हमारे देश में अगणित महापुरुष हुए हैं, जिनकी कहानी हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं।
लेखक-
रामचन्द्र सिंह (स०अ०)
प्रा० वि० जगजीवनपुर-2, ऐरायाँ
फतेहपुर (उ०प्र०)
कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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