146/2024, बाल कहानी-20 अगस्त


बाल कहानी- राखी के धागे
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एक जंगल में एक शेर रहता था। उसके आतंक से परेशान होकर सभी जानवर बारी-बारी से उसके पास प्रतिदिन एक नियत समय पर पहुँचने लगे।
उसी जंगल में एक नीलगाय का जोड़ा रहता था। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे थे। जब नीलगाय को पता चला कि अगले दिन शेर के पास पहुँचने की मेरी वारी है तो वह सोच में पड़ गया। उसकी पत्नी ने उसे इस तरह चिन्तित देखकर कहा-, "आप इस तरह सोच में क्यों बैठे हैं?"
नीलगाय ने कहा-, "हमारे प्राणों पर संकट आ खड़ा हुआ है। कल शेर के पास पहुँचने की मेरी बारी है।" उसकी पत्नी पुनः बोली-, "आप चिन्ता मत कीजिए.. मैंने इसका उपाय खोज लिया है और मुझे पूरी आशा है कि तुम्हें कुछ नहीं होगा।" यह कहकर उसने अपनी योजना के बारे में अपने पति को पूरी जानकारी दी और बोली कि-, "मैं शेर के पास जा रहा हूँ। आप चिन्ता मत करना।" यह कहकर नीलगाय की पत्नी थाली सजाकर शेर के पास जा पहुँची। जब शेर ने दूर से उसे आते हुए देखा तो वह तुरन्त समझ गया कि इसके पति की यहाँ आने की वारी तो कल है, यह आज यहाँ क्यों आयी है?" यह सोचकर शेर उसी ओर बढ़ गया। नीलगाय की पत्नी पास आकर बोली-, "प्रणाम भैया!" प्रत्युत्तर में शेर ने अपना सिर हिलाया। वह आगे बोली-, "मैं आपको सदा अपना भाई मानते आयी हूँ और हमेशा आपको भाई कहा है इसलिए इस नाते मेरा फ़र्ज है कि रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर आपको राखी बाँधू ताकि आप सदा सुरक्षित और सुखी रहें।" यह सुनकर शेर बहुत खुश हुआ और बोला-, "बहिन! ये तो बहुत अच्छी बात है कि आप मुझे राखी बाँधने आयी हो। ठीक है, बाँधिए।" शेर की आज्ञा पाकर नीलगाय की पत्नी ने शेर को राखी बाँधी और बहुत-सी मिठाई और पकवान खिलाये। मिठाई और पकवान खाकर शेर बहुत खुश हुआ। वह बोला-, "बहिन! माँगिए, क्या चाहिए?" यह सुनकर बहिन कुछ भी नहीं बोली। शेर बोला-, "क्या बात है? तुम राजा और भाई दोनों के पास खड़ी हो। मेरे रहते हुए तुम्हें किस बात की चिन्ता। मैंने तुम्हें वचन दिया है।" नीलगाय की पत्नी बोली-, "कल मेरे पति की यहाँ आने की बारी है।" यह सुनकर शेर बोला-, "तुम मेरी धर्म की बहिन हो। अगर मैं तुम्हारे पति को छोड़ दूँगा तो ये सबके साथ अन्याय और अनैतिक तथा भेद-भावपूर्ण होगा। तुम्हारी रक्षा करना मेरा धर्म है।"
"और बहिन के पति और बच्चों की रक्षा करना धर्म नहीं है? मैं जा रही हूँ। बड़े विश्वास से जीवन की खुशियाँ माँगने आपसे आई थी।" यह कहकर नीलगाय की पत्नी चली गयी और शेर उसे देखता रह गया। उसने अपने पति को जाकर विश्वास दिलाया कि उसे कल कुछ नहीं होगा। 
दूसरे दिन जब शेर के पास नीलगाय पहुँचा तो शेर व्याकुल होकर कराह रहा था। शेर को कराहते देखकर नीलगाय वैद्य को बुलाकर लाया और उसका उपचार कराया। जब शेर कुछ देर बाद स्वस्थ हुआ और होश में आया तो सारी हकीकत जानकर बोला-, "आज तुमने मेरी जान बचायी है, इसलिए जान के बदले जान वापस दे रहा हूँ। आप अपने घर जाइए।" शेर की बात सुनकर नीलगाय ने हाथ जोड़कर शेर को प्रणाम किया और अपने घर चला आया। उसकी पत्नी और बच्चों को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा हो सकता है।" नीलगाय बोला-, "आज रक्षाबंधन पर्व है, तुम्हारे प्रेम-भरे धागों की बदौलत मेरी जान बच गयी। सचमुच! प्रेम में बड़ी शक्ति है जो काल को भी जीत लेता है।" नीलगाय की पत्नी और बच्चे बहुत खुश हुए।

संस्कार सन्देश-
प्रेम पर सारा ब्रह्माण्ड टिका है। सभी प्रेम की शक्ति से एक-दूसरे की ओर घूम रहे हैं।

लेखक-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
ब्लॉक- मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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