जागो देशभक्त

जागो देशभक्त! रिपु मधान्ध हो सता रहे,

क्षणिक देर में सभी कुचक्र खेलते जा रहे।

व्यवधान, अड़चनें नहीं सैलाब गन्दगी का है,

विचारधारा मलिन है कुकृत्य कर दिखा रहे।।


नहीं सुरक्षित बेटियाँ, माताएँ, धन-सम्पदा,

लालच, चरित्रहीनता से देश को गिरा रहे।

अर्थ की है चाह केवल मानसिकता मर गयी,

मानव बने फिरते यहाँ जो पशु नजर नहीं आ रहे।।


देश की स्वतन्त्रता पर गर्व करना चाहते,

हम आम जनमानस हृदय की वेदना पढ़ पा रहे।

बच्चे पढ़ें, उन्नति करें कैसे जीवन सुखी होवे?

अपराध ऑनलाइन भी अति के सिखाए जा रहे।।


यह उन्नति है या है विकास कुछ समझ आता नहीं,

अपराधी तो अधिकतर स्वच्छन्द घूमे जा रहे।

करते रहें निर्वाह क्यों चुप रहकर  अपने देश में?

पत्रकार, लेखक, नेता, मंच बिकते जा रहे।।


भारत की भूमि है मनीषियों की, विद्वानों की,

आशीषों से सिंचित बाल-गोपाल छिनते जा रहे।

सीमा सुरक्षित करती फौज, सैनिक, देशभक्त भी,

कुछ आस्तीन के साँप अपने देश को डसे जा रहे।।


रचयिता
श्रीमती नैमिष शर्मा,
सहायक अध्यापक,
परि0 संविलियत पूर्व माध्यमिक विद्यालय तेहरा,
विकास खण्ड-मथुरा,
जनपद-मथुरा।



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