आज़ादी का अमृत 'भारतीय संविधान'

संविधान- निरपेक्ष  हमारा, रक्षा  सबकी  करता  है।

बच्चा-बच्चा प्राण से ज्यादा, प्यार देश को करता है।।

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कोई कितना बहकावे तुम,बहकावों में मत आना।

दुश्मन हैं बहकाने वाले, इन्हें कभी मत अपनाना।।

छीन मादरेवतन ये  लेंगे, आँचल  माँ  का  खींचेंगे।

संस्कृति  मटियामेट  करेंगे,  और  वफ़ाएँ  छीनेंगे।।

नज़रें  गड़ी झुकी रहतीं हैं, गद्दारी  जो  करता है।

संविधान निरपेक्ष हमारा~~~~~~~~~।।

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प्यार चाहते हो जन-गण से, तुम भी सबको प्यार करो।

धर्म जाति से ऊपर उठकर, जन-मन पर अधिकार करो।।

पहचानो अपना स्वरूप ,वसुधैव कुटुम्बकम् को जानो।

देश के पुरखे गौरवशाली,  सर्वमान्य  क्यों  हैं  जानो।।

पूरे  मन से करो  भरोसा, भ्रम  संशय  क्यों रखता है।

संविधान निरपेक्ष हमारा~~~~~~~~~~~~।।

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भावजगत में भाव हैं जितने,'भय' उन सबका नेता है।

जीवनरक्षा का मसला अरु, दुःख  चिन्तायें  देता है।।

भय से ग्रसित हृदय हिंसक हैं, निडर अहिंसक होता हैं।

'ईश्वर' निर्भयता  का  सद्गुण, मानव  को  ही देता हैं।

निर्भयता  का  योग  हमारा, देश  सिखाया करता  है।

संविधान निरपेक्ष हमारा,~~~~~~~~~~~।।

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ओट  छोड़ता है जब सूरज, अँधियारा मिट जाता है।

ज्ञाननेत्र  खुलने से  ऐसे, तिमिर  तिरोहित  होता है।।

भारत ज्ञान कराता आया, करुणा  दया  बरसती है।

निर्भयता का जीवन जी लो, माटी देश कि कहती है।

एक बार"निरपेक्ष"तू हो जा, उहा-पोह क्यों रखता है।

संविधान  निरपेक्ष  हमारा, रक्षा  सबकी  करता  है।।


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।

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