राखी... पवित्र प्रेम का अटूट नाता
दिव्य भूमि को नमन मेरा,
आबाद रहे यह चमन मेरा।
आन-बान की रक्षा करते,
उन वीरों को है नमन मेरा।
राखी करती अर्पित तुमको,
तुम ही हो भइया रतन मेरा।
मैं और ना कुछ माँगूँ तुमसे,
महफ़ूज रहे यह वतन मेरा।
भारत की हर बेटी है कहती,
है धरती अपनी है गगन मेरा।
तुमसे ही तो है यह नीर मेरा,
है अनल मेरा यह पवन मेरा।
रेशम के इस धागे को देकर,
हो जाता है दिल मगन मेरा।
रचयिता
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश',
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द,
विकास खण्ड-लक्ष्मीपुर,
जनपद-महराजगंज।
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